सतीश "बब्बा"
भीड़ में भी अकेले,
चल रहा तेरे साथ हूँ,
धरती, अम्बर में तुझे देखूँ,
तू कविता मेरी, मैं कवि हूँ!
चलते जीवों में तू दिखे,
खड़ी भीड़ में तू दिखे,
आँख बंद करूँ तू ही दिखे,
खुली आँखों में तू दिखे!
तेरा सृजन हो घास में,
काल कोठरी, मैदान में,
आँख खुली कविता बने ,
आँख बंद करूँ कविता बने!
निःवस्त्रता में तू खड़ी है,
गहन कपड़ों में तू डटी है,
मेरे पास कोई आए न आए,
मैं कवि तू मेरी कविता है!
चाहता तो मैं भी हूँ, तुझे छोड़ दूँ,
यह फक्कड़पन छोड़ दूँ,
फिर जब सुबह की देखूँ लालिमा,
लगता है तुझ पर जीवन वार दूँ!!