कविता। "माँ"
सतीश "बब्बा"
क्यों याद आ गयी तेरी माँ,
करती थी रखवाली माँ,
बापू को भी समझाती माँ,
शकुन तेरे आँचल में माँ!
माँ मैं समझा क्यों याद आती तेरी माँ,
क्यों सबकुछ खाली - खाली माँ,
हमें खिलाकर खुद भूखी सोती माँ,
बस प्रेम ही प्रेम सिखाती माँ!
दुनिया में बलिहारी माँ,
फटे आँचल में तेरे जादू माँ,
रूखी रोटी में भी स्वाद निराला माँ,
इसीलिए याद आ रही तेरी माँ!
मैं समझ रहा हूँ तुझको माँ,
क्यों जाकर भी पास होती माँ,
अब भूख न मिटती मेरी माँ,
समझ लिया क्यों याद आती तेरी माँ!
धरती से चौड़ी, अम्बर से ऊँची,
सागर से गहरी होती माँ,
क्यों दुख पाता, पास मेरे जो होती माँ,
समझ गया क्यों याद आती हैं तेरी माँ!
सतीश "बब्बा"