सतीश "बब्बा"
एक बेचारा,
चाहता है कि,
कोई मेरे पास आए,
मुझसे कुछ पूछे,
मेरी बातें सुने,
मेरे अनुभव पर,
बिचार करे,
अमल करे,
अच्छाइयों पर!
त्याग करे, बुराइयों की!
लेकिन सब मुंह फेर लेते हैं,
वही, जिनकी हर बातें,
हर रातें जागकर,
सुनता रहा है वह!
कभी वह भी दुलारा था,
अपने बाप का!
माँ की आँखों का तारा था,
आज वह खुद बाप है,
उपेक्षित है औलाद से,
क्योंकि वह बाप है, बाप है!!
सतीश "बब्बा