सतीश "बब्बा"
यह काले बादल,
सावन - भादों वाले,
जब घिर आते हैं,
खुश हो जाते हैं,
धरती - अम्बर,
और किसान!
वर्षा से हो जाती है,
धरती, हरी - भरी!
लेकिन जीवन में,
दुख की काली बदली,
जब कर्ज बनकर,
छा जाती है मन में!
सच कहता हूँ,
सारा जीवन,
हो जाता है,
बंजर!
झर जाते हैं पत्ते सब,
वीरान हो जाता है,
तन तरुवर!
तब मन कहता है,
उस मनुष्य का,
अब नहीं जीना है,
इस जीवन से तो,
नर्क अच्छा है!!