कविता। "कवि की पत्नी"
सतीश "बब्बा"
क्या कहूँ सभी कवि भाई मेरे,
पत्नी पर कटाक्ष करते हैं,
उसके कहीं जाने से खुश होते हैं,
घर में आजादी का जश्न मनाते हैं!
पता नहीं वह जश्न है या मातम,
दिल की बातें वह कहाँ बताते हैं,
एक मैं हूँ उनका छोटा भाई,
आज चलो हम अपना सत्य बताते हैं!
आज हमारी वाली पत्नी भी,
अपने मायके चली गई है,
जब वह रहती है खुद खाने को दौड़ती है,
दिन भर इक्का के घोड़ा सा दौड़ाती है!
उसके जाने से घर खाने को दौड़ता है,
वह दिन भर खिलाती थी, अब बहुएँ,
पानी पिलाती हैं, हम आँसू बहाते हैं,
सच मानो वह याद बहुत आती है!
सच्चाई यही है, वह कुछ लेकर नहीं गयी,
फिर भी घर सूना - सूना लगता है,
हम फुर्तीबाज थे, आज मन थक गया है,
सच कहता हूँ, एक दिन एक साल लगता है!!
सतीश "बब्बा"