सतीश "बब्बा"
मोही दिख गई आज जोंधइया,
याद आ रही, नानी के घर की अँधेरिया,
अम्मा - बापू हो गए दूर जैसे सरग तरैया,
बचपन की बची हैं यादें देखूँ सरग तरैया!
चकाचौंध, फिर से घेरा लोक - लोकैया,
अब बिजली में आँखें थक गई मेरे भैया,
अम्मा - बापू की यादें हैं, खेले छुपा - छुपैया,
बचपन से पचपन भी खोया छा गई अँधेरिया!
बचपन तो फिर आएगा, डूबेगी सरग तरैया,
यह पन जो कट जाएगा, उगेगी सरग तरैया,
फिर से आंगन हो न हो पर, होगी यही जोंधइया,
सब रिश्ते फिर होंगे नाम के, नहीं होगी वो मैया!
पहरेदार रहे जागते, सोते रहे सोवैया,
सूनी रात श्वान बोलते, डूब गई सरग तरैया,
भोर होत नदारद सब कुछ, रहे जागते पहरेदार जगैया,
धनिक का सब कुछ लुट गयो, का करे रात जगैया!
लूटने वाले ने सब कुछ लूटा, सूनी पड़ी मड़ैया,
पूरी उमर रह गया सोता, वही खा खा खैया,
डूबने के लिए सब कुछ डूबा, डूब गई जोंधइया,
दूर कहीं एक जोगी जागे, डूब गई सरग तरैया!!
सतीश "बब्बा"