सतीश "बब्बा"
पड़ गया सूखा दीनू काका,
आँख दिखाएँ सूरज दादा,
धरती कहे पुकार - पुकार,
प्यास लगी है सुनो गुहार!
मनुष्यों ने ही आफत डाली,
सभी वनस्पतियाँ काट डाली,
बड़े - बड़े पेड़ों को गिराया,
नदी सूखकर बन गई नाली!
वृक्ष लगाते फोटो खिंचवाते,
दुनिया में वाहवाही लेते,
फिर पेड़ की ओर नहीं देखते,
बिन सेवा के पेड़ सूख जाते!
होते थे जब बाग बगीचे,
जंगल में थे पेड़ बहुत से,
वर्षा होती थी धुवाँधार,
प्यासी धरती जाती अघाय!
अब तो ओंस से बादल बरसे,
भीगने को मन बहुत तरसे,
बैंक वाले वसूली ज्यादा करते,
किसान नित आत्महत्या करते!!