सतीश "बब्बा"
लम्बे, चौड़े, ऊँचे - पूरे,
मेरे गाँव के सेठ झड़ूरे,
दिन भर सेठ जी डाँड़ी मारे,
रात में पैसे गिनते सारे!
आखिर बैठे - बैठे सेठ का,
तोंद बढ़ी, फूला सेठ का पेट,
उठना, चलना दूभर हुआ सेठ का,
आगे वजनी बैरी हुआ पेट!
कहे सेठानी सुनो सेठ जी,
सुबह - सबेरे घूमो उठकर,
पहले कुछ दिन डण्डा लेकर,
फिर चलो अपने बल पर!
चलने लगे सबेरे उठकर सेठ,
थुल - थुल हाले सेठ का पेट,
वजनी, फूला, थुलथुल सेठ का पेट,
कुछ दिन हांफते, ऊँचे - नीचे होता पेट!
छह माह में हल्का हो गया पेट,
डाँड़ी मार सेठ का गुलगुला पेट,
रोज सेठानी भी चलती साथ में,
आखिर हल्के हुए सेठ, सेठ का पेट!!