सतीश "बब्बा"
आज फिर मेरे मित्र ने,
महाकाल, उज्जैन के लिए,
टिकट निकलवा लिए थे,
मैं पता नहीं क्यों,
न नहीं कर पाया!
बहुत दिनों से तमाम,
तीर्थों में जाता रहा हूँ,
और सदा सत्य,
अपनाता रहा हूँ,
फिर भी परेशानियाँ,
कम नहीं हुई!
जिन्होंने क्या सावन,
क्या भादों, कभी भी ,
किसी शिवलिंग को,
नहीं नहवाया,
किसी तीरथ का,
सेवन नहीं किया,
कभी सत्य नहीं बोला,
वही आनंद के साथ,
ऐशोआराम कर रहे हैं!
बहुत तो रोटियाँ सेंकने के लिए,
आस्था का,
उपयोग करते हैं,
उनसे कोई आस्था का,
दूर दूर तक,
रिश्ता नहीं है,
फिर भी वही सुखी हैं,
और सक्सेज हैं!
इतना जानते हुए भी,
अभाव में,
कर्ज लेकर,
बड़ी आस्था से,
दौड़ा चला जा रहा हूँ,
उसी शिव आराधना के लिए,
आस्था के लिए,
जहाँ से सुख और,
समृद्धि बहुत दूर है,
फिर भी,
मैं, जा रहा हूँ,
जा रहा हूँ!!
सतीश "बब्बा"