सतीश "बब्बा"
सिर्फ सात दिनों का खेला,
उसी में लगता है दुनिया का मेला,
घोड़ा, हाथी, मिठाई और झूला,
सात दिनों में ही सब कोई मिले ला!
सात दिनों में सुख खोजता,
सुख कहाँ, यों दुःख लेकर ही आता,
गर्भ से निकलते ही हैं सब रोता,
फिर सारी उमर सुख ही है खोजता!
सात दिनों से ज्यादा,
कहाँ है कोई जी पाता,
बड़े - बड़े ऋषि, राजा परीक्षित,
सात दिनों से ज्यादा नहीं रुक पाता!
रवि, सोम, मंगल का चक्कर,
बुध, गुरू, शुक्र, शनि का मक्कर,
यही भूल - भुलैया, जीवन चक्कर,
कभी नहीं भूख गई छककर!
जागो सब मेरे प्यारे भाई,
सप्ताह का खेल समझ न आई,
सुख तो तभी होगा मेरे भाई,
आत्मज्ञान जब तुझको आई!