कविता। "दादा जी"
सतीश "बब्बा"
दादा जी की जेब में,
दुनिया की चीजें रहती थी,
खट्टे - मीठे बेर, मकोई,
विभिन्न प्रकार की टाफ़ी रहती थी!
दादा जी की दुनिया हम थे,
पापा के लिए संकल्पित थे,
अपना जीवन हम पर वारा,
अपना सुख नहीं सोचते थे!
दादा जी की अब खाली जेब,
अब नहीं रहते मीठे बेर,
चलने में वह थक जाते हैं,
ऐनक में भी कम देख पाते हैं!
दादा जी अब भी प्यार करते हैं,
हम उनके पास जब भी जाते हैं,
अपनी जेब टटोल कर रह जाते हैं,
उनकी आँखों में आँसू होते हैं!
दादा जी आज चले गए हैं,
खाली खटिया छोड़ गए हैं,
साथ में नहीं कुछ ले गए हैं,
हमको यादें छोड़ गए हैं!!
सतीश "बब्बा"