कविता। "चिड़िया"
सतीश "बब्बा"
चलित विद्युत तारों में,
एक चिड़िया बैठी थी स्वच्छन्द,
प्रवाहित ग्यारह हजार वोल्टेज में,
गाती थी गीत मनोहर छंद!
मैंने पूछा, तुम्हें डर नहीं लगता,
उसने हंसकर कहा, डर तुम्हें है सताता,
हमें डर किसी से नहीं लगता,
यह तो मनुष्य है डर पालता!
उस चिड़िया ने मुझे समझाया,
हमने ऋण, धन नहीं कमाया,
हमने यह अंध ढकोसला नहीं बनाया,
यह मत सोचो हमने प्यार नहीं किया!
हमने भी प्यार किया है,
प्यार बाँटा और जिया है,
हमने भी बच्चे पैदा किया है,
पंख आने पर उन्हें छोड़ दिया है!
हमें क्या है बाज आएगा,
झपट्टा मारकर ले जाएगा,
हमारे शरीर से किसी का उदर भर जाएगा,
हमारा शरीर किसी के काम आएगा!
तुम मनुष्यों का काम क्या है,
धन कमाने के लिए हिंसा करेगा,
ईर्ष्या, द्वेष लेकर ही मरेगा,
तुम्हारा शरीर किसी के काम नहीं आएगा!!
सतीश "बब्बा"