शीतला माता और गधे की सवारी का महत्व
शीतला माता को गधे की सवारी के रूप में चित्रित किए जाने के पीछे धार्मिक, सांस्कृतिक और प्रतीकात्मक महत्व जुड़ा हुआ है। यह मान्यता मुख्य रूप से हिंदू धर्म और लोक परंपराओं में देखने को मिलती है। इस विषय पर विस्तार से चर्चा करने के लिए हमें इसके ऐतिहासिक, पौराणिक और सामाजिक पहलुओं को समझना होगा।
1. पौराणिक कथा एवं धार्मिक संदर्भ
शीतला माता को विशेष रूप से चेचक (smallpox), माता (measles), चिकनपॉक्स, और अन्य संक्रामक रोगों से बचाव करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। इनके बारे में प्रचलित एक पौराणिक कथा इस प्रकार है—
(क) देवी शीतला की उत्पत्ति
मान्यता है कि जब संसार में रोग और महामारी फैलने लगी, तब देवी दुर्गा के तेज से शीतला माता प्रकट हुईं। वे अपने साथ एक कलश में ठंडा जल और औषधियाँ लेकर आईं, जिससे वे बीमारियों को शांत करती थीं।
(ख) गधे को वाहन बनाने का कारण
जब देवी को अपने वाहन का चुनाव करना था, तब सभी देवताओं और ऋषियों ने उन्हें उच्च और शक्तिशाली वाहन (शेर, हाथी, घोड़ा आदि) चुनने का सुझाव दिया। लेकिन शीतला माता ने विनम्र, त्यागी और सहनशील गधे को अपनी सवारी बनाया। इसके कई कारण थे—
-
सादगी और सेवा का प्रतीक: गधा एक साधारण, मेहनती और सहनशील प्राणी है। वह बिना किसी शिकायत के कठिन परिस्थितियों में भी काम करता है। शीतला माता भी बिना किसी भेदभाव के सभी लोगों की रक्षा करती हैं।
-
संक्रमण नियंत्रण और स्वच्छता: गधा प्राचीन समय में ग्रामीण क्षेत्रों में कचरा उठाने और सफाई करने में मदद करता था। देवी शीतला का मुख्य उद्देश्य भी संक्रमण को रोकना और स्वच्छता को बढ़ावा देना था।
-
मानव अहंकार को चुनौती: उच्च और शक्तिशाली वाहन लेने से लोग देवी को भी राजसी समझने लगते। लेकिन उन्होंने गधे को अपनाकर यह संदेश दिया कि ईश्वर सादगी और सेवा में बसते हैं, न कि दिखावे में।
2. सामाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण
शीतला माता की पूजा मुख्य रूप से ग्रामीण और जनजातीय क्षेत्रों में होती है, जहाँ लोग गधे को सहनशीलता और सेवा का प्रतीक मानते हैं। कई गाँवों में आज भी गधे को सम्मान के साथ देवी की सवारी के रूप में देखा जाता है।
(क) स्त्रियों की आराध्या
शीतला माता को विशेष रूप से महिलाओं द्वारा पूजा जाता है, क्योंकि वे संतान को रोगों से बचाने वाली देवी मानी जाती हैं। गधे की सवारी से यह भी संदेश मिलता है कि मातृत्व और सेवा का कार्य विनम्रता से किया जाना चाहिए।
(ख) रोग निवारण की परंपरा
प्राचीन समय में गधे के दूध को औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता था, और इसे कई बीमारियों के इलाज में उपयोग किया जाता था। शीतला माता का गधे पर सवार होना इस बात को भी दर्शाता है कि वे अपने वाहन के माध्यम से रोगों को नियंत्रित करने का प्रतीक बन गईं।
3. आध्यात्मिक एवं दार्शनिक संदेश
- सहनशीलता और धैर्य: गधा कठिन परिस्थितियों में भी कार्य करता रहता है, ठीक वैसे ही जैसे हमें जीवन की कठिनाइयों का सामना धैर्यपूर्वक करना चाहिए।
- सादगी और विनम्रता: ईश्वर का सच्चा स्वरूप सादगी में होता है, न कि आडंबर में।
- सभी के लिए समानता: शीतला माता सभी को समान रूप से आशीर्वाद देती हैं, चाहे वे अमीर हों या गरीब।
निष्कर्ष
शीतला माता ने गधे को वाहन इसलिए चुना क्योंकि वह सादगी, सहनशीलता, सेवा, और समर्पण का प्रतीक है। इसके माध्यम से उन्होंने यह संदेश दिया कि समाज में स्वच्छता, रोग निवारण और समानता को अपनाना चाहिए। उनकी यह सवारी हमें यह भी सिखाती है कि दिव्यता और महानता का संबंध बाहरी दिखावे से नहीं, बल्कि आंतरिक गुणों से होता है।