दुर्योधन और भानुमती का विवाह महाभारत की कथाओं में एक रोचक प्रसंग है, हालांकि यह मुख्य कथा में विस्तार से वर्णित नहीं है। इस प्रसंग का उल्लेख महाभारत के कुछ उपाख्यानों और लोककथाओं में मिलता है।
विवाह का प्रसंग
भानुमती, काशीराज की पुत्री थीं। वे अत्यंत सुंदर, बुद्धिमान और बलशाली थीं। दुर्योधन ने जब भानुमती के रूप और गुणों की प्रशंसा सुनी, तो उसने उनसे विवाह करने का निर्णय लिया।
काशीराज ने अपनी पुत्री के विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन किया, जिसमें विभिन्न राजाओं और राजकुमारों को आमंत्रित किया गया। दुर्योधन भी उस स्वयंवर में गया। स्वयंवर की परंपरा के अनुसार, भानुमती को अपनी पसंद के वर का चयन करना था।
हालांकि, दुर्योधन ने इस परंपरा को नकारते हुए बलपूर्वक भानुमती का हरण कर लिया। वह अपने मित्र कर्ण की सहायता से भानुमती को अपने रथ में बैठाकर Hastinapur ले गया। यह घटना महाभारत में कौरवों के स्वभाव और उनके व्यवहार को दर्शाती है।
विवाह और संबंध
भानुमती ने प्रारंभ में इस विवाह का विरोध किया, लेकिन बाद में उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया। दुर्योधन और भानुमती के संबंधों के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि दोनों के बीच सम्मान और प्रेम था। उनकी एक पुत्री लक्ष्मणा (जिसका विवाह कृष्ण के पुत्र साम्ब से हुआ) और एक पुत्र लक्ष्मण था।
लोक कथाओं में भानुमती
भानुमती को भारतीय लोककथाओं में एक समर्पित पत्नी और धैर्यवान स्त्री के रूप में दर्शाया गया है। कुछ कहानियों में उनके साहस और विवेक को उजागर किया गया है, जो महाभारत के अन्य चरित्रों के साथ उनकी तुलना करता है।
यह प्रसंग दुर्योधन के अहंकार और कर्ण के प्रति उसकी मित्रता को भी दर्शाता है, क्योंकि कर्ण ने दुर्योधन के इस प्रयास में पूरा साथ दिया।