श्रीराम जी सीता मैया की खोज में वन- वन भटकते हुए आगे बढ़ने लगे।एक वन में कबंध नामक राक्षस रहता था। पूर्व जन्म में वह एक गंधर्व था। परन्तु दुर्वासा ऋषि के शाप से उसे राक्षस योनि प्राप्त हुई थी। राम - लक्ष्मण को देखकर उसने उनपर आक्रमण कर दिया। श्रीराम ने अपने वाणों से उसे मार डाला।
कुछ आगे जाने पर श्रीराम और लक्ष्मण शबरी के आश्रम में पधारे। श्रीराम तथा लक्ष्मण को देखकर शबरी भाव- विह्वल हो गई। उनकी लंबी प्रतीक्षा पुरी हुई। शबरी ने उन्हें बड़े आदर तथा प्रेम से आसन पर बैठाया और मीठे -मीठे बेर खिलाए फिर विनीत भाव से बोली,"प्रभु! मेरे पास प्रेम के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। प्रभु मुझे अपनी भक्ति प्रदान करें।" राम जी ने कहा," हे भामिनी! तुम्हारी सरल, निष्कपट और निश्छल भक्ति से मेरा हृदय प्रसन्न हुआ।जो गति योगियों के लिए भी दुर्लभ है,वह आज तुम्हें प्राप्त हो गई है।" श्रीराम प्रभु ने उन्हें आशीर्वाद दिया।
जानकी माता के बारे में जब भगवान राम ने पूछा तो शबरी ने कहा," हे प्रभु जी! आप तो सर्वज्ञ हैं,आप यहां से पंपा सरोवर की ओर जाएंगे तो वहां ऋष्यमूक पर्वत पर आपकी सुग्रीव जी से मित्रता होगी। वे आपकी सहायता अवश्य करेंगे।"
यह बात सुनकर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम और भाई लक्ष्मण शबरी से विदा लेकर आगे बढ़ गए।