बाबा शालिग्राम शिला बनने की ऐतिहासिक कहानी एवं महिमा
शालिग्राम शिला की ऐतिहासिक कहानी
शालिग्राम शिला भगवान विष्णु के प्रतीक माने जाते हैं और इनका उद्भव गंडकी नदी से हुआ है, जो नेपाल में स्थित है। हिंदू धर्म में शालिग्राम शिला को भगवान विष्णु का स्वरूप माना गया है और इसे पवित्र तथा पूजनीय माना जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार तुलसी (तुलसी पौधे की देवी) ने भगवान विष्णु से वरदान मांगा कि वे सदा उनके साथ रहें। भगवान विष्णु ने वरदान देते हुए यह वचन दिया कि वे शालिग्राम शिला के रूप में गंडकी नदी में विराजमान रहेंगे। गंडकी नदी के किनारे पाए जाने वाले पत्थरों को ही शालिग्राम शिला कहा जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार, जलंधर नामक राक्षस की पत्नी वृंदा, भगवान विष्णु की आराधिका थीं। जलंधर को अमरता प्राप्त थी, क्योंकि उसकी पत्नी का पतिव्रता धर्म उसकी रक्षा करता था। भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म तोड़कर जलंधर को पराजित किया। वृंदा ने इस घटना से आहत होकर भगवान विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दे दिया। इसके परिणामस्वरूप, भगवान विष्णु शालिग्राम शिला के रूप में गंडकी नदी में प्रकट हुए।
शालिग्राम शिला की महिमा
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भगवान विष्णु का स्वरूप: शालिग्राम शिला को भगवान विष्णु के 24 विभिन्न स्वरूपों का प्रतीक माना जाता है। प्रत्येक शिला के आकार और चिह्नों के अनुसार उनका अलग-अलग स्वरूप होता है।
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पवित्रता और शुभता: घर में शालिग्राम शिला रखने और उनकी पूजा करने से पवित्रता और शुभता बनी रहती है। यह सभी प्रकार के पापों को नष्ट करने वाली मानी जाती है।
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धन और समृद्धि: ऐसी मान्यता है कि शालिग्राम शिला की पूजा करने से घर में धन, सुख, और समृद्धि का वास होता है।
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मोक्ष प्रदान करने वाली: शालिग्राम शिला की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति दिलाने वाली मानी जाती है।
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वैष्णव परंपरा में विशेष स्थान: वैष्णव साधु और भक्त शालिग्राम शिला को अपने पूजन का मुख्य केंद्र मानते हैं। यह उनके लिए भक्ति और तपस्या का साधन है।
गंडकी नदी का महत्व
गंडकी नदी, जिसे काली गंडकी भी कहा जाता है, नेपाल में हिमालय क्षेत्र से निकलती है और इसके किनारे शालिग्राम शिला प्राकृतिक रूप से पाई जाती हैं। माना जाता है कि यह नदी स्वयं देवी गंगा का ही एक स्वरूप है।
शालिग्राम शिला की पूजा विधि
- शालिग्राम शिला की पूजा जल, दूध और तुलसी पत्र से की जाती है।
- इसे नियमित रूप से साफ किया जाता है और पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल) से अभिषेक किया जाता है।
- पूजा में तुलसी पत्र का विशेष महत्व है, क्योंकि भगवान विष्णु को तुलसी अत्यंत प्रिय है।
शालिग्राम शिला की पूजा न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करती है, बल्कि यह भक्तों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और संतुलन भी लाती है।