महर्षि श्रृंगी, जिन्हें श्रृंग ऋषि के नाम से भी जाना जाता है, प्राचीन भारतीय धर्म और इतिहास में एक महत्वपूर्ण ऋषि के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनका वर्णन प्रमुखतः वाल्मीकि रामायण और पुराणों में मिलता है। उनके जीवन की कथा और उनकी महिमा अत्यंत प्रेरणादायक है।
1. जन्म और परिवार
महर्षि श्रृंगी कश्यप ऋषि के वंशज और महर्षि विभांडक के पुत्र थे। उनके जन्म की कथा काफी रोचक है। कहा जाता है कि महर्षि विभांडक एक तपस्वी ऋषि थे, और अप्सरा उर्वशी के कारण उनके पुत्र श्रृंगी का जन्म हुआ। उनका नाम 'श्रृंगी' इसलिए पड़ा क्योंकि उनके मस्तक पर श्रृंग (सींग) जैसा उभार था।
2. तपस्या और संयम
महर्षि श्रृंगी अपने पिता के साथ जंगल में रहते थे और कठिन तपस्या में लीन रहते थे। उन्होंने ब्रह्मचर्य और तपस्या से अद्भुत आध्यात्मिक शक्तियाँ प्राप्त कीं। वे जीवनभर सांसारिक मोह-माया से दूर रहे।
3. दशरथ की पुत्रकामेष्टि यज्ञ
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, राजा दशरथ ने जब संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ करने का निश्चय किया, तो महर्षि श्रृंगी को यज्ञ करने के लिए बुलाया गया। श्रृंगी ऋषि ने पुत्रकामेष्टि यज्ञ का अनुष्ठान किया, जिसके परिणामस्वरूप राजा दशरथ को चार पुत्र—राम, लक्ष्मण, भरत, और शत्रुघ्न—की प्राप्ति हुई। इस घटना ने महर्षि श्रृंगी को भारतीय धर्मग्रंथों में अमर कर दिया।
4. श्रृंगी ऋषि और शांता
महर्षि श्रृंगी का विवाह शांता से हुआ, जो राजा दशरथ की पुत्री और रोमपद राजा की दत्तक पुत्री थीं। यह विवाह भी उनके तप और शील का प्रतीक माना जाता है।
5. महिमा और योगदान
महर्षि श्रृंगी को उनकी तपस्या, संयम और यज्ञ विधियों के लिए जाना जाता है। उनकी शक्ति और तप के कारण उन्हें देवताओं के समान सम्मान दिया जाता था। उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे हमेशा धर्म और सत्य के मार्ग पर चलते थे।
6. पुराणों में महिमा
पुराणों में महर्षि श्रृंगी की महिमा के कई प्रसंग हैं। उनके आशीर्वाद से कई राजाओं ने अपने राज्य को संकट से मुक्त किया। उनकी आध्यात्मिक शक्ति और तपस्या का प्रभाव इतना महान था कि देवता भी उनकी पूजा करते थे।
निष्कर्ष
महर्षि श्रृंगी की कथा हमें संयम, तपस्या, और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। उनकी यज्ञ विधि और धर्मनिष्ठा उन्हें भारतीय इतिहास और संस्कृति में एक अद्वितीय स्थान प्रदान करती है। उनका जीवन सत्य, त्याग और धर्म के आदर्शों का प्रतीक है।