माता अहिल्या और ऋषि गौतम की कहानी हिंदू धर्मग्रंथों में एक महत्वपूर्ण कथा है, जो नैतिकता, तपस्या और भगवान के करुणा स्वरूप को दर्शाती है। यह कथा वाल्मीकि रामायण और पुराणों में वर्णित है।
कथा:
अहिल्या, ब्रह्मा द्वारा बनाई गई अत्यंत सुंदर और पवित्र स्त्री थीं। उनका विवाह महर्षि गौतम से हुआ। महर्षि गौतम तपस्वी थे और अहिल्या भी उनके साथ तपस्वी जीवन जीती थीं।
देवताओं के राजा इंद्र ने अहिल्या की सुंदरता पर मोहित होकर छल का सहारा लिया। जब गौतम ऋषि अपनी तपस्या के लिए गए, तो इंद्र ने गौतम का रूप धारण कर अहिल्या से संपर्क किया। अहिल्या ने इसे समझ नहीं पाई और धोखे का शिकार हो गईं।
गौतम ऋषि जब वापस आए, तो अपनी दिव्य दृष्टि से सारा सच जान गए। उन्होंने क्रोधित होकर इंद्र को श्राप दिया कि उसका शरीर 1000 आंखों से ढक जाएगा (जिसे बाद में कमल की आकृति में बदल दिया गया)। अहिल्या को भी उन्होंने श्राप दिया कि वह पत्थर बन जाएंगी और तभी मुक्ति पाएंगी, जब भगवान विष्णु स्वयं उनके चरणों का स्पर्श करेंगे।
अहिल्या का उद्धार:
रामायण के अनुसार, भगवान राम जब अपने गुरु विश्वामित्र के साथ मिथिला नगरी जाते हैं, तो रास्ते में अहिल्या का आश्रम आता है। भगवान राम उनके तप और पश्चाताप को देखते हुए पत्थर रूपी अहिल्या को अपने चरणों से स्पर्श कर मुक्त कर देते हैं। अहिल्या फिर से अपने दिव्य रूप में प्रकट होती हैं और गौतम ऋषि के पास लौट जाती हैं।
शिक्षा:
- अहंकार और वासना का त्याग करना चाहिए।
- पवित्रता, तपस्या और क्षमा का जीवन में महत्व है।
- भगवान की करुणा और न्याय पर विश्वास करना चाहिए।
यह कहानी दर्शाती है कि सच्चे प्रायश्चित से मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।