माता कामरूप कामाख्या की कथा असम राज्य के कामाख्या मंदिर से जुड़ी हुई है, जो पवित्र शक्तिपीठों में एक प्रमुख स्थल माना जाता है। यह मंदिर गुवाहाटी शहर के पास नीलाचल पर्वत पर स्थित है और यहां देवी मां कामाख्या की पूजा होती है। कामाख्या देवी को शक्ति की देवी और योनिक शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
इतिहास और कहानी: कामाख्या देवी की महिमा और कथा पुराणों में वर्णित है। एक प्रमुख कथा के अनुसार, जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित होकर आत्मदाह कर लिया था, तो भगवान शिव अपने शोक में लीन हो गए थे। उन्होंने सती के शव को अपने कंधे पर रख लिया और संसार में घूमें। इसके कारण सृष्टि का संतुलन बिगड़ गया। तब भगवान विष्णु ने चक्र से सती के शरीर को खंड-खंड कर दिया। देवी सती का योनिमुख भाग कामाख्या में गिरा, और यहीं पर उनकी पूजा का महत्व बढ़ा। इसे ही 'कामाख्या शक्तिपीठ' कहा जाता है।
महिमा और पूजा: कामाख्या देवी को 'कामरूपेश्वरी' और 'कामाख्या' के नाम से पूजा जाता है। वे योनिशक्ति की देवी मानी जाती हैं, और उनका पूजन मुख्य रूप से शक्ति, प्रेम और समृद्धि के लिए किया जाता है। यहां पर विशेष रूप से अंबा, काली, तारा, भवानी, आदि देवियों की उपासना भी होती है। हर साल जून माह में 'कामाख्या मंदिर का महोत्सव' होता है, जिसे 'अंबूवाची मेला' कहा जाता है। यह मेला देवी के रजस्वला होने की स्थिति को लेकर मनाया जाता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु आते हैं।
कामाख्या देवी के मंदिर में विशेष पूजा, अनुष्ठान और यज्ञ होते हैं, और इसे एक शक्तिपीठ के रूप में माना जाता है, जहां लोगों के हर तरह के दुख और कष्ट दूर होते हैं। यहाँ की शक्ति, तप, और भक्तों की आस्था इसे एक अनोखा और दिव्य स्थल बनाती है।