प्राचीन युग में भारतीय समाज में नारियों की स्थिति अत्यंत सम्माननीय और मजबूत थी। उन्हें शिक्षा, राजनीति, और समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अवसर मिलता था। वैदिक युग में महिलाएं विदुषी, ऋषिकाएं और समाज के नेतृत्व में भागीदारी निभाती थीं। जैसे गार्गी, मैत्रेयी और अपाला जैसी विदुषियों ने अपनी विद्वता से समाज को नई दिशा दी। उस समय नारी को पुरुष के समकक्ष माना जाता था।
लेकिन मध्य युग में सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक कारणों से नारियों की स्थिति में गिरावट आई। विदेशी आक्रमणों, सामंती व्यवस्था और कठोर धार्मिक नियमों के कारण महिलाओं की स्वतंत्रता और अधिकार सीमित हो गए। बाल विवाह, पर्दा प्रथा और सती जैसी प्रथाएं इस गिरावट का प्रतीक बनीं। महिलाओं को घर की चारदीवारी तक सीमित कर दिया गया और उनके शिक्षा और स्वतंत्र विचारों पर अंकुश लगाया गया।
आज के समय में, नारी सशक्तिकरण ने इस ऐतिहासिक अन्याय को सुधारने की दिशा में कदम उठाए हैं। महिलाओं को शिक्षा, रोजगार, और निर्णय लेने में समान अधिकार दिए जा रहे हैं। सरकारी योजनाएं, कानून, और सामाजिक आंदोलन जैसे ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ और ‘महिला आरक्षण’ ने नारियों को मुख्यधारा में लाने में मदद की है।
महिला सशक्तिकरण केवल समाज का उत्थान ही नहीं, बल्कि यह दिखाता है कि जब नारियों को समान अवसर और अधिकार दिए जाते हैं, तो वे समाज और राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। हमें इस दिशा में सतत प्रयास करते रहना चाहिए ताकि प्राचीन युग की गरिमा और सम्मान को पुनः प्राप्त किया जा सके।