बाबा रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की ऐतिहासिक कहानी एवं महिमा
पौराणिक कथा:
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग, जिसे भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है, का सीधा संबंध भगवान राम की कथा से है। यह स्थान तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है।
जब भगवान राम लंका के राजा रावण का वध करने के लिए समुद्र पार करने वाले थे, तो उन्होंने पहले भगवान शिव की पूजा करने का निर्णय लिया। उन्होंने रावण वध के बाद ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए शिवलिंग स्थापित करने की सोची। इसके लिए उन्होंने हनुमान जी को कैलाश पर्वत भेजा कि वे शिवलिंग लाएं।
हनुमान जी के लौटने में देर होने लगी, इसलिए माता सीता ने स्वयं रेत से शिवलिंग बनाया, जिसे रामलिंगम कहा जाता है। जब हनुमान जी कैलाश से शिवलिंग लेकर लौटे, तब उन्होंने शिवलिंग को बदलने की इच्छा व्यक्त की, लेकिन भगवान राम ने उन्हें बताया कि पहला शिवलिंग उनकी पूजा के लिए पवित्र है। हनुमान जी ने इसे दूसरे स्थान पर रखा, और वह शिवलिंग हनुमानलिंगम के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
महिमा:
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मुक्ति और मोक्ष:
रामेश्वरम की पूजा करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है। यह स्थान मोक्ष प्राप्ति का द्वार माना जाता है। -
तीर्थ स्थान:
रामेश्वरम को भारत के चार धामों में से एक माना जाता है। यहां गंगा, यमुना, सरस्वती और अन्य पवित्र नदियों का संगम माना जाता है। -
आध्यात्मिक शक्ति:
कहा जाता है कि जो व्यक्ति सच्चे मन से यहां भगवान शिव की पूजा करता है, उसे जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। -
धार्मिक स्नान:
रामेश्वरम मंदिर के परिसर में 22 पवित्र कुंड (थीर्थम) हैं, जिनमें स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है।
मंदिर की वास्तुकला:
रामेश्वरम मंदिर अपने भव्य गोपुरम (मंदिर के मुख्य द्वार) और लंबे गलियारों के लिए प्रसिद्ध है। इसकी स्थापत्य शैली द्रविड़ वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
उत्सव और अनुष्ठान:
रामेश्वरम में महाशिवरात्रि और कार्तिक मास में विशेष पूजा और उत्सव आयोजित किए जाते हैं। यहां आने वाले भक्त गंगा जल से भगवान रामलिंगम का अभिषेक करते हैं।
रामेश्वरम की यात्रा हर हिंदू के जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि यह स्थान शिव और विष्णु की एकता का प्रतीक है।