मुंबा देवी की ऐतिहासिक कहानी और महिमा
मुंबा देवी मुंबई की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं। इस देवी का नाम ही "मुंबई" शहर का नामकरण करने का आधार बना। मुंबा देवी को महाराष्ट्र और विशेष रूप से मुंबई में व्यापक श्रद्धा और सम्मान के साथ पूजा जाता है।
इतिहास
मुंबा देवी मंदिर का निर्माण 14वीं शताब्दी में हुआ था। ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर मूल रूप से कोली मछुआरा समुदाय द्वारा स्थापित किया गया था। कोली समुदाय मुंबा देवी को अपनी कुलदेवी मानते थे। "मुंबा" शब्द "महाअंबा" (देवी दुर्गा का एक रूप) से लिया गया है।
इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप 17वीं शताब्दी में अस्तित्व में आया जब मूल मंदिर को दक्षिण मुंबई के भुलेश्वर क्षेत्र में स्थानांतरित किया गया। पहले यह मंदिर मुंबा देवी के नाम पर स्थित द्वीप पर था, जो बाद में ब्रिटिशों के मुंबई विकास के दौरान खो गया।
कहानी
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मुंबा देवी एक देवी थीं जिन्होंने एक शक्तिशाली राक्षस मंबा को हराया था। मंबा राक्षस ने गांव के लोगों को परेशान किया था। उनकी प्रार्थनाओं के उत्तर में, देवी दुर्गा ने एक अवतार लिया और मंबा को पराजित किया। इस घटना के बाद गांववालों ने देवी को "मुंबा देवी" नाम दिया और उनकी पूजा शुरू कर दी।
महिमा
- मुंबई की संरक्षिका: मुंबा देवी को मुंबई शहर की संरक्षक देवी माना जाता है।
- मन्नत पूरी करने वाली देवी: भक्त मानते हैं कि मुंबा देवी सच्चे हृदय से मांगी गई हर मन्नत पूरी करती हैं।
- कोली समुदाय की आस्था: कोली मछुआरों के लिए यह मंदिर विशेष महत्व रखता है। वे हर शुभ कार्य देवी को समर्पित करते हैं।
- नारी शक्ति का प्रतीक: देवी मुंबा को दुर्गा और महिषासुरमर्दिनी के रूप में देखा जाता है, जो नारी शक्ति की प्रतीक हैं।
मुंबा देवी मंदिर की वास्तुकला
मुंबा देवी मंदिर भारतीय स्थापत्य शैली में बना है। यह मंदिर बहुत भव्य नहीं है, लेकिन इसमें देवी की मूर्ति बेहद शक्तिशाली और दिव्य मानी जाती है। देवी की प्रतिमा बिना सिर के रूप में प्रतिष्ठित है, जो यह दर्शाती है कि वह हर रूप में पूजनीय हैं।
त्योहार और उत्सव
मुंबा देवी मंदिर में नवरात्रि और दीवाली बड़े उत्साह के साथ मनाए जाते हैं। भक्त इस दौरान देवी की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं।
मुंबा देवी की कहानी और उनकी महिमा इस बात का प्रतीक है कि वह न केवल शहर की आध्यात्मिक संरक्षक हैं, बल्कि संस्कृति और इतिहास का भी अभिन्न हिस्सा हैं।