कोलकाता मेट्रो रेल भारत की पहली मेट्रो रेल सेवा है, जिसे शुरू करने का सफर चुनौतियों से भरा रहा। इस परियोजना की नींव 1972 में रखी गई, और पहली सेवा 24 अक्टूबर 1984 को दमदम से टॉलीगंज (अब कवी सुभाष) के बीच शुरू हुई।
प्रमुख चुनौतियां:
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भौगोलिक चुनौतियां: कोलकाता का घना आबादी वाला इलाका और पुरानी इमारतें इस परियोजना को क्रियान्वित करने में बड़ी बाधा बनीं। खुदाई और निर्माण के दौरान कई बार पुरानी संरचनाओं को नुकसान पहुंचने का खतरा था।
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प्रौद्योगिकी की कमी: 1970 के दशक में भारत में ऐसी उन्नत तकनीक उपलब्ध नहीं थी, जिससे मेट्रो का निर्माण सुचारू रूप से किया जा सके। विदेशों से तकनीकी सहायता लेनी पड़ी।
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वित्तीय समस्याएं: परियोजना का बजट बार-बार बढ़ा, क्योंकि निर्माण में देरी हुई। शुरुआती अनुमान से कहीं ज्यादा खर्च हुआ, जिसे पूरा करना सरकार के लिए चुनौती था।
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जन समर्थन और जन जागरूकता: लोगों को नई प्रणाली के फायदे समझाने और भूमि अधिग्रहण के लिए उनका समर्थन प्राप्त करना मुश्किल था। कई बार विरोध प्रदर्शन हुए।
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प्राकृतिक चुनौतियां: गंगा नदी और उसके आसपास की मिट्टी का प्रकार निर्माण के लिए मुश्किल साबित हुआ। पानी का रिसाव और मिट्टी के धंसने की समस्या से निपटना पड़ा।
सफलता की कहानी:
इन चुनौतियों के बावजूद, कोलकाता मेट्रो रेल ने भारत में सार्वजनिक परिवहन के क्षेत्र में एक नई क्रांति की शुरुआत की। इसकी सफलता ने अन्य महानगरों जैसे दिल्ली, मुंबई, और बेंगलुरु में मेट्रो रेल परियोजनाओं का मार्ग प्रशस्त किया।
कोलकाता मेट्रो आज भी अपनी ऐतिहासिक विरासत और प्रभावशाली सेवा के लिए जानी जाती है।