सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र की कहानी
राजा हरिश्चन्द्र सत्य और धर्म के पालन के लिए प्रसिद्ध एक आदर्श राजा थे। वे सूर्यवंशी वंश के राजा और अयोध्या के शासक थे। उनकी कहानी सत्य, त्याग और आदर्श चरित्र की अद्भुत मिसाल है।
कहानी का विवरण
राजा हरिश्चन्द्र अपने न्यायप्रियता और सत्य के प्रति निष्ठा के लिए जाने जाते थे। एक बार ऋषि विश्वामित्र ने उनकी सत्यता की परीक्षा लेने का निश्चय किया। ऋषि ने राजा हरिश्चन्द्र को उनकी संपत्ति, राज्य और धन छोड़ने के लिए बाध्य कर दिया।
राजा ने अपने वचन को निभाने के लिए अपना राज्य त्याग दिया और पत्नी तारामती व पुत्र रोहिताश्व के साथ काशी चले गए। जब उन्हें ऋषि को दक्षिणा चुकानी पड़ी, तो उन्होंने स्वयं को एक डोम (चांडाल) के पास गिरवी रख दिया। उनकी पत्नी ने श्मशान में काम किया और उनका पुत्र रोहिताश्व भी कठिनाइयों का सामना करता रहा।
त्याग और परीक्षा
हरिश्चन्द्र और उनकी पत्नी ने हर संकट का सामना किया, लेकिन उन्होंने सत्य और धर्म का साथ नहीं छोड़ा। एक समय ऐसा आया जब उनका पुत्र सांप के काटने से मर गया। तारामती ने अपने पुत्र का अंतिम संस्कार करने के लिए श्मशान में जगह मांगी, लेकिन हरिश्चन्द्र ने अपने कर्तव्य को निभाते हुए उनसे शुल्क मांगा। यह देखकर देवता प्रसन्न हुए और हरिश्चन्द्र की परीक्षा समाप्त हुई।
महिमा
- राजा हरिश्चन्द्र सत्य और धर्म की प्रतीक हैं।
- उन्होंने अपने वचन और कर्तव्य के लिए सब कुछ त्याग दिया।
- उनकी कहानी से यह संदेश मिलता है कि सत्य और न्याय का पालन करना कठिन हो सकता है, लेकिन अंततः सत्य की जीत होती है।
- यह कहानी भारतीय संस्कृति में नैतिकता और कर्तव्य की शिक्षा देती है।
राजा हरिश्चन्द्र की गाथा आज भी प्रेरणा का स्रोत है और हमें यह सिखाती है कि कठिनाइयों के बावजूद सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए।