महाभारत के विभिन्न प्रसंगों में अर्जुन और उलूपी की प्रेम कथा एक रोचक और मार्मिक कहानी है। यह कथा अर्जुन के वनवास काल की है, जब उन्होंने एक नियम के तहत इंद्रप्रस्थ छोड़ दिया था।
कथा का प्रारंभ
अर्जुन अपने वनवास के दौरान अनेक स्थानों की यात्रा करते हुए नागलोक पहुँचे। वहाँ उनकी भेंट नागराजा कौरव्य की पुत्री उलूपी से हुई। उलूपी पहली दृष्टि में ही अर्जुन पर मोहित हो गईं।
उलूपी का प्रेम प्रस्ताव
उलूपी ने अर्जुन के समक्ष अपने प्रेम का प्रस्ताव रखा। अर्जुन ने पहले अपने व्रत और धर्म का हवाला देकर प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। लेकिन उलूपी ने उन्हें यह समझाया कि उनका साथ नागवंश को कल्याणकारी सिद्ध होगा और यह धर्म की दृष्टि से भी उचित है।
प्रेम और विवाह
अर्जुन ने उलूपी के प्रेम को स्वीकार किया और दोनों का विवाह नागलोक में हुआ। इस विवाह से अर्जुन और उलूपी का एक पुत्र हुआ, जिसका नाम इरण्वान (या अरावन) रखा गया।
उलूपी की सहायता
उलूपी ने अर्जुन के जीवन में कई बार महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एक बार जब अर्जुन को शापवश मृत्यु का सामना करना पड़ा, तो उलूपी ने अपनी योग्यता और तप से उन्हें जीवनदान दिया। इसके अलावा, उन्होंने अर्जुन को उनके युद्धों में भी प्रेरित और मार्गदर्शित किया।
कथा का संदेश
अर्जुन और उलूपी की प्रेम कथा न केवल प्रेम और समर्पण को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि कठिन परिस्थितियों में भी धर्म और कर्तव्य का पालन कैसे किया जाए। उलूपी का प्रेम निस्वार्थ और समर्पित था, और उन्होंने अर्जुन के जीवन में एक सहायक भूमिका निभाई।
यह कथा महाभारत के विविध पक्षों को उजागर करती है और अर्जुन के चरित्र के बहुआयामी स्वरूप को सामने लाती है।