माता सती और भगवान शिव के बिछड़ने की कथा हिंदू धर्मग्रंथों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह घटना देवी सती के त्याग, सम्मान और धर्म के प्रति समर्पण को दर्शाती है। कथा इस प्रकार है:
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सती का जन्म और विवाह:
देवी सती राजा दक्ष की पुत्री थीं। सती ने कठोर तपस्या करके भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त किया। हालांकि, राजा दक्ष भगवान शिव को एक तपस्वी और गृहस्थ जीवन के अनुकूल न मानते थे, और वे शिव को नापसंद करते थे। -
दक्ष का यज्ञ और अपमान:
राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें सभी देवताओं और ऋषि-मुनियों को आमंत्रित किया गया, लेकिन भगवान शिव और सती को नहीं बुलाया। सती को जब इस बात का पता चला, तो वे अपने पति शिव के मना करने के बावजूद यज्ञ में पहुंच गईं। -
सती का अपमान:
यज्ञ में, राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया और उनके बारे में कटु शब्द कहे। सती अपने पिता का यह व्यवहार सहन नहीं कर सकीं। -
सती का आत्मत्याग:
पिता द्वारा शिव का अपमान देखकर सती ने यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। उन्होंने कहा कि वह ऐसे शरीर को धारण नहीं करेंगी जो उनके पति का सम्मान न कर सके। -
शिव का क्रोध और बिछड़ाव:
सती की मृत्यु से भगवान शिव अत्यंत क्रोधित और दुखी हो गए। उन्होंने वीरभद्र और अपने गणों को भेजकर यज्ञ को नष्ट कर दिया। इसके बाद, सती के शरीर को उठाकर भगवान शिव शोक में इधर-उधर घूमते रहे। इस घटना से सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा। तब भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से खंडित कर दिया, और जहां-जहां उनके अंग गिरे, वहां शक्तिपीठ स्थापित हुए। -
पुनर्जन्म:
देवी सती ने बाद में पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया और कठोर तपस्या के बाद फिर से भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया।
इस कथा से यह संदेश मिलता है कि सच्चा प्रेम और धर्म हमेशा सर्वोच्च होता है, और अहंकार विनाश का कारण बनता है।