लघुकथा। "मड़ियार सिंह"
सतीश "बब्बा"
आज मड़ियार सिंह के घर जाना हुआ। और उस गरीबों के मसीहा को, मवेशी खाना में चारपाई में पड़े, सोता देखकर मैं चौंक गया। शायद रात में मच्छरों के कारण यह सो नहीं पाया। और मैं उसी की चारपाई में बैठ गया।
मुझे मड़ियार सिंह के बीते दिनों की याद आने लगी, 'वह कभी मचान में बैठकर शिकार नहीं किया। वह शेर को भी सामने से मार देता था। और शेर उछलकर दर पर ही ढेर हो जाता था।
'मड़ियार सिंह को बदमाश थर - थर काँपते थे। वह गरीबों के लिए किसी से भी लड़ जाता था।
मड़ियार सिंह के ही व्यवहार से, पूरा गाँव उसके लड़के को वोट देकर प्रधान बना दिया था। उस लड़के का गाँव में पक्का मकान और शहर में पक्की हवेली बन गई थी।
आज मड़ियार सिंह को मवेशी के पास पड़ा, मच्छरों के बीच देखकर, मेरे आँसू चल गए ।
तभी मड़ियार सिंह जाग उठा और वह रो पड़ा। उसे अपनी पत्नी की याद आ रही थी। उसने कहा, "काश आज वह होती, तो मैं...!"
तभी एक गाँव के जमींदार मोहन शर्मा आ गए और मड़ियार सिंह अपनी सारी पीड़ा पीते हुए, अपने बेटों - पोतों की प्रशंसा के पुल बांधने लगा।
मैं समझ गया। वह सबसे अपना दुख भी नहीं कहना चाहता था।
मैं थके कदमों से, मड़ियार सिंह के पास से उठकर अपने घर की ओर चला आया।
सतीश "बब्बा"
मैं प्रमाणित करता हूँ कि निम्नलिखित रचना मेरी अपनी लिखी हुई मौलिक एवं अप्रकाशित है मैने इसे अन्यत्र प्रकाशनार्थ नहीं भेजा है।
रचना - लघुकथा। ( "मड़ियार सिंह )
तारीख - 02 - 10 - 2022
सतीश "बब्बा"
हस्ताक्षर
पता - सतीश चन्द्र मिश्र, ग्राम + पोस्ट = कोबरा, जिला - चित्रकूट, उत्तर - प्रदेश, पिन - 210208.
मोबाइल - 9451048508, 9369255051.
ई मेल - babbasateesh@gmail.com