अरे ओ महात्मा ! याद है तुम्हें
उस वस्त्रहीन को
वस्त्र देने के बाद,
अपने वस्त्रों को आजीवन
सीमित कर लिया था तुमने ।
अरे ओ माधव ! स्मरण होगा तुम्हें
उसके वस्त्रों के ह्रास का प्रयास,
जब उसके वस्त्रों को,
असीमित कर दिया था तुमने ।
सबको याद होगा कि
देश की सर्वोच्च कुर्सी पर
बैठी हुई है महिला एक,
मन ही मन कभी तो,
उसके ज़ज्बे और संघर्षों को
सलाम किया होगा तुमने ।
अरे ओ ! याद तो होगा वो रण
जब शत्रु के हर कुत्सित प्रयास को
झुकना पड़ गया था
अपने देश की दुर्गा के आगे
और वो अपनी जमीन और लोगों को
भय से छोड़ कर थे भागे ।
ओ वेवकूफों, जाहिलों !
कभी सुने हैं तुमने
उन तमाम वैज्ञानिकों, लेखकों और
समाज-सेविकाओं के नाम
जिनकी प्रतिभा की चमक के आगे
शीश क्या, राष्ट्र भी झुके तमाम,
और जरूर याद होगी तुम्हे
कल्पना चावला की उड़ान ।
चलो छोड़ो सब,
क्या देखा नहीं तुमने,
उनमें चेहरा अपनी माँ का,
बहन का, बेटी का या पत्नी का,
उफ्फ, इस हद तक प्रतिरोध,
इस स्तर का प्रतिशोध ।
याद रखना आतताइयों !
ईश्वर का वचन है कि
जब-जब पाप बढ़ेगा
तो अवतार लेंगे,
कहीं इस बार उनका अवतार
हुआ कोई स्त्री रूप,
तो कहाँ छिप सकोगे ।
अरे ओ ! मानवता के दुश्मनों ,
कलियुग के दानवों !
कहीं ऐसा न हो कि,
सृष्टि कहीं स्त्री का सृजन ही रोक दे,
तब ढूंढ़ते रहोगे
एक स्त्री, सिर्फ एक स्त्री,
उसके अपमान के लिए नहीं,
पूरी श्रद्धा, आवश्यकता एवं लाचारी के साथ,
पूर्ण नतमस्तक होकर ।
परन्तु सृष्टि भी एक स्त्री है,
क्या क्षमा कर सकेगी तुम्हें,
वो सृष्टि, वो स्त्री ।
(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"