दोहरी होती गयी
हर चीज़
दोहरी होती
जिंदगी के साथ.
आस्थाएं, विश्वास, कर्त्तव्य
आत्मा और
फिर उसकी आवाज ।।
एक तार को
एक ही सुर में
छेड़ने पर भी
अलग-अलग
परिस्थितियों में
देने लगा
अलग-अलग राग,
जैसे वोह कोई और था
और यह है
और कोई साज़ ।।
अपने से द्वंद्व करते-करते
खत्म करता रहा
अपने ही दो हिस्से
और झपटता रहा
स्वयं पर ही
बन कर
चील, गिद्ध और बाज़ ।।
(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"