जब मैं तुमसे प्रश्न करूँगा,
मुझे पता था यही कहोगे,
साँसे तन से भारी होंगी,
रोक रखोगे, बोझ सहोगे।
शब्दों से परहेज़ तुम्हें है,
शब्दों के संग नहीं रहोगे,
तुम तो जादूगर हो कोई,
आँखों से मन की बात कहोगे।
शब्द किये हैं कैद तुम्ही ने,
अक्षर डिबिया में रक्खे हैं,
बेचारों को दो आज़ादी,
कब तक इनको कैद रखोगे।
होंठ सिये मत बैठे रहना,
कब तक विष का पान करोगे,
इंतज़ार है अब उस पल का,
अपने अधरों को गति तुम दोगे।
(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”