धारायें बदली गईं,
भारत के नए विधान,
गौरव से मन पूर्ण है,
इतना सुन्दर काम ।
धाराये बदली गईं,
नूतन नव-परिधान,
चलो-चलो इतना हुआ,
अपने हुए विधान ।
दासता के पीठ पर,
खुरचे हुए निशान,
कबसे पीछे था पड़ा,
विदेशियों का बना विधान ।
आज़ादी पाई मगर,
फिर भी रहे गुलाम,
ये प्रतीक दासत्व का,
मिट गया नामोनिशान ।
कहने को तो कर किया ,
चिर- धाराओं में बदलाव,
पर इससे मिटता कहाँ,
आपराधिक मन-भाव ।
चाहे न बदलती धारायें,
पर रुक जाते अपराध,
धर्म मार्ग पर जागते,
करते जन-हित काज ।
(C)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
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