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बोगेनविलिया

8 October 2023

28 Viewed 28

वो
बोगेनविलिया की बेल
रहती थी उपेक्षित,
क्योंकि
थी समूह से दूर,
अलग, अकेली, एक तरफ;
छज्जे के एक कोने में
जब देती थीं
सारी अन्य लताएँ
लाल, पीले, नारंगी
फूल,
वो रहती थी मौन,
सिर्फ

एक पतली-सी डंडी
कुछ पत्ते लिए हुए
काँटों के साथ.

आज सुबह से ही
हरसिंगार का पौधा
हर्ष का
मचा रहा था
शोर,
लाल, पीले, नारंगी
फूल,
जा चुका था
इनका मौसम.
था
सफ़ेद, शांत
फूलों का दौर.
तभी तो
हरसिंगार के सफ़ेद फूल
हैं प्रसन्न,
पाकर
अपना नया साथी,
क्योंकि
बोगेनविलिया की
उस उपेक्षित लता पर
भी
खिल उठे थे
धवल चांदनी-से
श्वेत फूल.

(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्" 

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Articles
NEEL PADAM
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Literary Work of writer and poet Deepak Kumar Srivastava " Neel Padam "
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माँ शारदे

8 October 2023
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शब्द मुक्त न होते अधरों से वाक्य कंठ में अटक जाते, नहीं लेखनी होती जग में अक्षर न पृष्ठों पर आते। मन के उद्गारों की कैसे कोई छवि दिखला पाते, रचना कोई होती न जग में न चित्र, चल-चित्र ही बन पाते।

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काश! मैं पाषाण होता

8 October 2023
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काश! मैं पाषाण होता, मेरे ह्रदय पर कोई पाषाण तो नहीं होता, काल के आघात से विखर जाता, वेदना से छटपटाकर नहीं रोता ।। पूष की ठिठुरन होती, या जेठ की अंगार तपन, श्रावण का सत्कार होता, या होता पतझड़ क

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ट्रान्सफर

8 October 2023
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कभी नहीं हटती है, रहती है सदा चिपककर वो लिजलिजी सी हठी छिपकली कभी इस दीवाल पर, या छत पर, या उस दीवाल पर. गिरगिट रहता बगीचे में या बाहर लॉन की घास पर हरसिंगार, सुदर्शन, नीम और तुलसी पर करता रहत

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धार तुम देते रहो

8 October 2023
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धार तुम देते रहो रहोगे अभिशप्त, यदि करोगे सत्य का तिरष्कार, सकारात्मक-विचारवान बन, कर लो सत्य को स्वीकार; सत्य का स्वरुप ही है- निर्विकार स्वरुप, असत्य भ्रम का ज़ाल है, अज्ञान का प्रतिरूप; पर

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बोगेनविलिया

8 October 2023
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वो बोगेनविलिया की बेल रहती थी उपेक्षित, क्योंकि थी समूह से दूर, अलग, अकेली, एक तरफ; छज्जे के एक कोने में जब देती थीं सारी अन्य लताएँ लाल, पीले, नारंगी फूल, वो रहती थी मौन, सिर्फ एक पतली-स

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द्वंद्व

8 October 2023
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दोहरी होती गयी हर चीज़ दोहरी होती जिंदगी के साथ. आस्थाएं, विश्वास, कर्त्तव्य आत्मा और फिर उसकी आवाज ।। एक तार को एक ही सुर में छेड़ने पर भी अलग-अलग परिस्थितियों में देने लगा अलग-अलग राग,

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अभिलाषा

8 October 2023
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मेरी ये अभिलाषा है, कि अपनी दोनों मुठ्ठियों में एक मुठ्ठी आसमान भर लूं. मेरी ये अभिलाषा है, कि आकाश को खींचकर, मैं धरती से उसका मिलन कर दूं. मेरी ये अभिलाषा है, कि अब की चौमासे में, पहली बूँद

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विश्वामित्र-मेनका

8 October 2023
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विश्वामित्र-मेनका गर्व था मुझे मेरे, मन के विश्वामित्र पर, अभिमान था मुझे मेरे, चित्त के स्थायित्व पर, स्वच्छंद मृग सा घूमता था, डोलता था हर समय, स्वयं के ही अंतर्मन से, खेलता था हर समय। पर उसी क

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बॉलीवुड के शैतान

8 October 2023
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इनसे न हो पायेगा कोई ढंग का काम, बॉलीवुड के शैतान हैं सचमुच भारी ढीठ । ढीठ बड़े ये भारी न चूकें कोई मौका धार्मिक भावनाओं को छेड़ने को ये मारे सब चौका । जब मारें ये चौका छूटे इनके भी छक्के, भा

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फ़ितरत

8 October 2023
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आप जहाँ पाँव रखोगे, ये वहीँ अपनी पूँछ मानेंगे, इनकी यही फ़ितरत है, ये बिना डसे कहाँ मानेंगे। आपकी साधारण लब्धि भी इनके लिए कारण है एक, विष-वमन कर देंगे, वैसे है ये उदाहरण एक। आपके एक-एक शब्द मे

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जरासन्ध के पुत्र

8 October 2023
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जरासन्ध के पुत्रों ने देश को गाली बना दिया, सम्पन्न था सब संसाधन से खाने की थाली बना दिया। ये कंस कुलों के कुल-घातक कृष्णा को चोर बताते हैं, पर बैठे हैं जिस शाख पे ये उसको ही तोड़ चबाते हैं। जय

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भीगे मन को भीगा सावन, सूखा-सूखा लगता है ।

8 October 2023
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भीगे मन को भीगा सावन, सूखा-सूखा लगता है ।  मूक अधर, सूनी नजरों से, चौपाल भला कब सजता है ।   आँखों की कोरें भीगी हों  तो क्या करना सावन का,  मन में यदि न उम्मीदें हों  तो क्या करना सावन का,  रहें

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सृष्टि भी स्त्री है

8 October 2023
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अरे  ओ महात्मा ! याद है तुम्हें उस वस्त्रहीन को वस्त्र देने के बाद, अपने वस्त्रों को आजीवन सीमित कर लिया था तुमने । अरे ओ माधव !  स्मरण होगा तुम्हें उसके वस्त्रों के ह्रास का प्रयास, जब उसके वस

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राम की रहमत

8 October 2023
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रूह बनकर उतरती है, रख लेता हूँ, आसमान से बरसती है, रख लेता हूँ, मुझ खाकसार को, क्या कायदा, क्या अदब, ये तो राम की रहमत है, लिख लेता हूँ।  (C) @दीपक कुमार श्रीवास्तव  " नील पदम्"   

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अर्धांग्नी ! चल हट

8 October 2023
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बच्चों से गलती हो जाती है हे हे ही ही करके हँसना, ये मर्दों का प्रदेश है फिर एक महिला का भी हे हे ही ही करके हँसना। सच तो ये है कि ये स्त्री का संघर्ष मंद हो उसका एक षड्यंत्र है । उन्हें कब पस

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अब देर मत करो

8 October 2023
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ऐ भाई ! जरा देख कर चलो  जरा संभल कर चलो  पर उससे पहले जाग जाओ |  कब तक आँखें बंद कर  काटते रहोगे वही पेड़  जिस पर बैठे हो तुम, ऐसा तो नहीं कि  आरी चलने की आवाज  तुम्हें सुनाई नहीं देती,  या  त

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जब मैं तुमसे प्रश्न करूँगा

8 October 2023
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जब मैं तुमसे प्रश्न करूँगा, मुझे पता था यही कहोगे, साँसे तन से भारी होंगी, रोक रखोगे, बोझ सहोगे। शब्दों से परहेज़ तुम्हें है, शब्दों के संग नहीं रहोगे, तुम तो जादूगर हो कोई, आँखों से मन की बात क

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प्रकृति और तुम

8 October 2023
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बिलकुल सूर्योदय के समय नदी के घुमाव के साथ-साथ सरसों के फूलों भरे खेत, आँचल लहरा दिया हो तुमने जैसे। सूरज की पहली किरणों से नहाकर नदी चमक उठी है कैसी बचपन युक्त तुम्हारी, निर्दोष हँसी हो जैसे।

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शातिर दुनिया

8 October 2023
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है वक़्त बड़ा शातिर, कमबख्त ज़माना है, सब बोझ अंधेरों का, जुगनू को उठाना है। आँधी को उड़ा करके, तूफाँ को जवाँ करके, वो बैठे हुए है क्यों, सूनामी उठा करके। एक आग लगाकर वो, कहते ये फ़साना है, दीपक के का

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शतरंज की बिसात

8 October 2023
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शतरंज की बिसात सी बनी है ज़िन्दगी, खुली हुई क़िताब के मानिंद कर निकल। भूल जा हर तलब, हर इक नशा औ जख्म, अब तो बस एक रब का तलबगार बन निकल। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”  

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शहर

8 October 2023
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कौन कहता है, सो रहा है शहर, कितने किस्से तो कह रहा है शहर। किसी मजलूम का मासूम दिल टूटा होगा, कितना संजीदा है, कितना रो रहा है शहर। ये सैलाब किसी दरिया की पेशकश नहीं, अपने ही आँसुओं में बह रहा है

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पल्लू में बंधे पत्थर

8 October 2023
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पल्लू में उसके बंधे रहते हैं अनगिनत पत्थर, छोटे-बड़े बेडौल पत्थर मार देती है किसी को भी वो ये पत्थर। उस दिन भी उसके पल्लू में बंधे हुए थे ऐसे ही कुछ पत्थर। कोहराम मचा दिया था उस दिन उसने रेल

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बेटी

8 October 2023
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मेरी प्यारी सी बच्ची, पहले बसंत की प्रतीक्षा में, लेटी हुई एक खाट पर मेरे घर के आँगन में। प्रकृति की पवित्र प्रतिकृति एकदम शान्त, एकदम निर्दोष अवतरित मेरे घर परमात्मा की अनुपम कृति। देखती टुकु

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कारगिल युद्ध के दौरान लिखी मेरी कविता

8 October 2023
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मैं कैसे मान लूँ, कि- बसंत आ गया, जबकि सीमा पर हमारे सिपाही, पतझड़ के पत्तों की तरह गिर रहे हों । मैं कैसे मान लूँ, कि- पावस आ गया, जबकि शहीद की वेवा के आँसू, रो-रोकर सूख गए हों । मैं कैसे मान

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Misile Man

8 October 2023
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कभी हुनर नहीं खिलता कभी जज्बा नहीं मिलता, हजारों बुलन्दियां होतीं, पर ये रुतबा नहीं मिलता। समन्दर हो जमीं हो या के हो आसमान की बातें, जो प्रिय कलाम ना होता इन्हें ककहरा नहीं मिलता। ये मेरे मुल

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चले आओ

8 October 2023
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कविता का संसार गढ़ना है, बन प्रेरणा चले आओ, हाँ, मुझे उड़ना है, तुम पँख बनकर लग जाओ । देखना है मुझे, उस क्षितिज के पार क्या है, जानना है मुझे, सपनों का सँसार क्या है । कल्पना के संसार में, तैरन

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धूर्त

8 October 2023
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जुबां पे दिलकश दिलफरेबी बातों का शहद, दिल में जहर-ओ-फरेब का समंदर हो ॥ मुस्कराहट के साथ फेरते हो नफरती तिलिस्म, सोचता हूँ कितने ऊपर औ कितने जमीं के अन्दर हो ॥ फूलों की डाल से दिखाई देते हो लेक

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आम राजा

8 October 2023
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सुर्खाब की देखें सूरत , लोग दशहरी के दीवाने । सफेदा का रस अलबेला , चौसा चखे तोही मन माने । तोतापरी से शेक बनाए , हापुस देख के मन ना माने । देशी के दस बने अचार , फजली आते मन भरमाने । लंगड़ा भी त

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कुछ ग़ज़ल सी

8 October 2023
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इसकी तामीर की सज़ा क्या होगी, घर एक काँच का सजाया हमने । मेरी मुस्कान भी नागवार लगे उनको, जिनके हर नाज़ को सिद्दत से उठाया हमने । वक़्त आने पर बेमुरव्वत निकले, वो जिन्हें गोद में उठाया हमने

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चंचल हिरनी

8 October 2023
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मेरे मन के शांत जलाशय से, ओ! वन की स्वच्छंद चँचल हिरनी तूने नीर-पान करके- शांत सरोवर के जल में ये कैसी उथल-पुथल कर दी। मैं शांत रहा हूँ सदियों से, यूँ ही एकांत का वासी हूँ, मैं देश छोड़ कर दूर व

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फ़ितरत-ए-साँप

8 October 2023
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फ़ितरत-ए-साँप आप जहाँ पाँव रखोगे, ये वहीँ अपनी पूँछ मानेंगे, इनकी यही फ़ितरत है, ये बिना डसे कहाँ मानेंगे। आपकी साधारण लब्धि भी इनके लिए कारण है एक, विष-वमन कर देंगे, वैसे है ये उदाहरण एक। आप

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तेरा कंधे पे सर रखकर

8 October 2023
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तेरा कंधे पे सर रखकर के, शुकराना अदा करना, रहे हरदम यही मंजर, मुझे कुछ याद ना रखना । घड़ी वो थी मुबारक, आपने बोला था शुक्रिया, एक बार बोले आप, खुदाया सौ बार शुक्रिया, इसी तरह नज़र-ए-इनायत हम पर तुम

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मैथिलीशरण गुप्त

8 October 2023
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राष्ट्र के कवि हो तुम  तुम कवि विशुद्ध हो, शब्दों के चितेरे तुम, स्पष्ट अभिव्यक्त हो । हरिगीतिका के दक्ष तुम,  काव्य के प्रत्यक्ष तुम,  हो पूज्यनीय व्यक्ति तुम    नव चेतना जगा गये,  इस तरह समृ

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Writer Introduction - दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”

8 October 2023
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दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”  एक विज्ञान की गलियों में भटक कर रास्ता भूल कर साहित्य की गलियों में पहुंचा यायावर;  रोटी के जुगाड़ से बचे हुए समय का शिक्षार्थी;  मौलिकता ही मूलमंत्र, मन में

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धाराओं में बदलाव

20 October 2023
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कहने को तो कर किया , चिर- धाराओं में बदलाव, पर इससे मिटता  कहाँ, आपराधिक मन-भाव ।     -दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "     

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धाराये बदली गईं

20 October 2023
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धाराये बदली गईं, नूतन नव-परिधान, चलो-चलो इतना हुआ, अपने हुए विधान ।             -दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "          

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दासता के पीठ पर

20 October 2023
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दासता के पीठ पर, खुरचे हुए निशान, कबसे पीछे था पड़ा, विदेशियों का बना विधान ।                  

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बदली धाराएं

20 October 2023
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चाहे न बदलती धारायें, पर रुक जाते  अपराध,    धर्म मार्ग पर जागते,  करते जन-हित काज ।             

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धारायें बदली गईं

20 October 2023
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धारायें बदली गईं, भारत के नए विधान,  गौरव से मन पूर्ण है, इतना सुन्दर काम ।                 

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आज़ादी

20 October 2023
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आज़ादी पाई मगर,  फिर भी रहे गुलाम,  ये प्रतीक दासत्व का, मिट गया नामोनिशान ।               

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शर्त

20 October 2023
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इश्क की पहली शर्त कि कोई शर्त ना हो 🌹 @नील पदम्  

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आशिकी

20 October 2023
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जब से मेरी आशिकी, उनके दिल में जा बसी, मैं तो हूँ पागल मगर, है गायब उनकी भी हँसी। @ दीपक कुमार श्रीवास्तव ” नील पदम् “   

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दुश्वारियां भली

20 October 2023
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थोड़ी दुश्वारियां ही भली, या रब मेरे, दुश्मनों की अदावत तो कम रहती है। @नील पदम्  1  

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धूप की उम्मीद कुछ कम सी है

20 October 2023
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धूप की उम्मीद कुछ कम सी है, कि मौके का फायदा उठाया जाये। इतने सर्द अह्सास हुए हैं सबके, घर एक बर्फ का बनाया जाये ॥ @” नील पदम् “   

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कैसा दौर

20 October 2023
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जाने कैसे दौर से गुजर रहा हूँ मैं, वक़्त के हर मोड़ पे लड़खड़ाता हूँ, वो बन्दा ही जख्म-ए-संगीन देता है, जिसको पूरे दिल से मैं अपनाता हूँ ।। @*नील पदम् *   

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उम्मीद

20 October 2023
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उम्मीदों के आसमान पे बैठे हुए थे जब, वो क्या गिरा आंखें जिसे संभाल ना पायीं ।। @ नील पदम्   

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धारे

20 October 2023
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आँखों में उसके बहते हुए धारे हैं, वो भी मुझसा कोई फरियादी है। @नील पदम्   

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कमल खिलेंगे

20 October 2023
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कुंठाओं के दलदल में, उल्लासोँ के कमल खिलेंगे । यदि निराशा भरी दीवालों पर, आशा की खिड़की खुली रखेंगे ।। @नील पदम्   

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संबंधों के पुल

20 October 2023
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संबंधों के पुल के नीचे जब, प्रेम की नदियाँ बहती हैं, जीवन के दो पल में भी तब, पूरी सौ सदियाँ रहती हैं ॥ @नील पदम्   

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प्रेम नदी

20 October 2023
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संबंधों के पुल के नीचे जब, प्रेम की नदियाँ बहती हैं, जीवन के दो पल में भी तब, पूरी सौ सदियाँ रहती हैं ॥ @नील पदम्   

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मेरे वश में नहीं

20 October 2023
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मेरे वश में नहीं है, तुम्हारी सजा मुकर्रर करना । तुम ही कर लो जिरह औ फैसला मुकम्मल कर लो ॥ @नील पदम् 

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बेफिक्री

20 October 2023
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जलने वालों का कुछ हो नहीं सकता, वो तो मेरी बेफिक्री से भी जल बैठे ॥ @नील पदम्   

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चमचागिरी

20 October 2023
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छोड़ भगौने को चमचा, चल देगा उस दिन । माल भगौने के भीतर, ना होगा जिस दिन ॥ @ नील पदम्   

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फलसफा

20 October 2023
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पत्थर का सफ़ीना भी, तैरता रहेगा अगर, तैरने के फलसफे को, दुरुस्त रखा जाये।   @नील पदम्    

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हुनर

20 October 2023
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मुनासिब है, ऊंचाइयों पर जाकर रुके कोई, उड़ने का हुनर अगर, बाज से सीखा जाये ।   @नील पदम्    

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सिद्दत

20 October 2023
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कोई हुनर में तब तलक कैसे, माहिर हो, पूरी सिद्दत से जब तलक ना, सीखा जाये। “नील पदम् ”   

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सब चलता है

20 October 2023
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जनाब मासूम जनता है, यहाँ सब चलता है। @ नील पदम्   

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चेहरों की सिलवटें

20 October 2023
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वक़्त गुजरेगा आहिस्ता-आहिस्ता,  इसकी सिलवटें  हर चेहरे पर होंगी ।       @नील पदम्    

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बेगैरत हवाएँ

20 October 2023
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हम इस उम्मीद में जागे की सवेरा होगा,  पर वही बेगैरत हवायें थीं फ़िजाओं में ।   @नील पदम्                 1  

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एक खता

20 October 2023
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मुस्कुराने की आदत छोड़ नील पदम् , खुश रहना भी एक खता है समझो ॥   @नील पदम्    

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ग़मगीन दुश्मन

20 October 2023
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हर वक़्त इसी गम में दुश्मन, ग़मगीन हमारा रहता है, कोई बन्दा कैसे हरदम, यूँ खुशमिजाज रह लेता है।   @नील पदम्                       

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वक़्त का सितम

20 October 2023
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वक़्त सितम इस तरह, ढा रहा है आजकल, हाथ वायां दायें को, बहका रहा है आजकल ॥ @ नील पदम्   

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सत्यदीप

20 October 2023
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सत्य दीप जलता हुआ,  लौ  हवा हिलाए बुझ न पाए, करे प्रयास यदि कोई आँधी, चिंगारी बन  आग लगाये । (c)@नील पदम्  

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ताबीज़

20 October 2023
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अनुभव एक ताबीज है रखियो इसे सम्भाल, बुरे वक़्त के टोटके, लेगा सभी संभाल । (c)@नील पदम्  

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कागज

20 October 2023
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साँसें कागज की नाँव पर, चलतीं   डरत  डराए, जाने किस पल पवन चले, न जाने कित  जाएँ । (c)@नील पदम्  

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स्वार्थ

20 October 2023
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जो निज माटी से करे, निज स्वारथ से बैर, उसको उस ठौं भेजिए, जित  रस लें भूखे शेर।  

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दोहे

20 October 2023
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सुन्दर तन तब जानिये,  मन भी सुन्दर होय,  मन में कपट कुलांचता, तन भी बोझिल होय ।                (c)@नील पदम्     

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किरदार

20 October 2023
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पानी सा किरदार था, तो पसंद नहीं था, चढ़े रंग जब दुनिया के, तो ऐब कह दिया। जीने नहीं देती है ये, चाहे ऐसे चाहे वैसे, दुनिया ने शराफत से, कुछ पेश ना किया ॥ (C)@नील पदम्  

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पत्थर नहीं अगर

20 October 2023
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अपनी आँखों की चमक  से, डरा दीजिये उसे, हँस के हर एक बात पर,  हरा दीजिये उसे, पत्थर नहीं अगर , तो मोम भी नहीं, एक बार कसके घूरिये,  जता दीजिये उसे । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"    

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जब कभी ये वतन याद आये

20 October 2023
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जब कभी ये वतन याद आये तुझे,  माटी,  ममता,  मोहल्ला बुलाये तुझे, दो नयन मूँदना, पुष्प चढ़ जायेंगे,  संग मिलेंगी करोड़ों दुआयें तुझे ।               (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"       

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स्मृति

20 October 2023
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यहु तो विधाता की भली,  स्मृति देत भुलाय,  नहिं ते विपदा याद कर, जग जाता बौराय  ।  (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"                     

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आजमाईश

20 October 2023
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आँखें बंद की हैं उनको आजमाने के लिए, वो आयेंगे भी या नहीं हमें मनाने के लिए ।   @नील पदम्    

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प्रज्ञान

20 October 2023
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धरती का बेटा गया, मिलने मामा चाँद, मुश्किल थी थोड़ी मगर, पहुँचा वो दूरी फांद । @नील पदम्  

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प्रज्ञान के निशान

20 October 2023
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प्रज्ञान चलता चाँद पर,   छोड़त भया निशान,       इसरो, भारतवर्ष की, यूँ  बनी रहेगी शान  ।         @नील पदम्   

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आबो हवा

20 October 2023
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कुदरत से  थोड़ी सी  तो  वफाई कर लो, आसमान पिता, धरती को माई कह लो, कब तक बोझ डालोगे पिता की कमाई पर, इस आबो-हवा की, थोड़ी सफाई कर लो । @नील पदम् 

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बता दो

20 October 2023
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बहुत दिन हुए तुम  बता दो कहाँ हो  मेरी धडकनें सब  सुनेगी कहाँ हो, मेरे लबों पर भी  आयेंगीं खुशियाँ  जहाँ हो अगर तुम  वहीँ मुस्कुरा दो ।   @नील पदम्                               

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याद

20 October 2023
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बहुत दिनन के, बाद आयी हमका, मोरे पिहरवा की, याद रे ॥1॥ चाँदी जैसे खेतवा में, सोना जैसन गेहूँ बाली, तपत दुपहरिया में आस रे ॥2॥ अँगना के लीपन में, तुलसी तले दीया, फुसवा के छत की, बरसात रे ॥3॥ कु

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कसर

20 October 2023
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कुछ कसर रह गई पक ये पाया नहीं,  ज़िंदगी की तपिश में  तपाया नहीं, थोड़ी मेहनत का  तड़का लगा देते तो, न कहते कभी  स्वाद आया नहीं ।  कुछ कसर रह गई,  स्वाद आया नहीं  ॥         (c)@दीपक कुमार श्र

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ख्वाब

20 October 2023
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कुछ नींदों से अच्छे-खासे ख़्वाब उड़ जाते हैं, कुछ ख़्वाबों से मगर  नींदें भी  उड़ जातीं हैं, नींद या ख़्वाबों की ताबीऱ आप पर निर्भर है,  दोनों में से  आप अहमियत किसे दे जाते हैं  ।      @नील पदम्  

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मानुष तन तब जानिये

20 October 2023
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मानुष तन तब जानिये,  मानुष हृदय संजोए,  मानुष मन के अभाव में,  कैसा  मानुष होय । @नील पदम्  

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ताबीर

20 October 2023
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स्वप्न झर रहे हों यदि,  ताबीर हो पाती नहीं, प्रयास अपने गौर कर, रोक कैसी है यदि कहीं।  @नील पदम्  

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रौशनी

20 October 2023
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आँखों की रौशनी से बड़ी, मन की रौशनी,  इल्म की इबादत से जड़ी,  स्वर्ण रौशनी, आँखों का देखना कभी, हो जायेगा गलत,  पढ़ती नहीं गलत कभी,  ये मन की रौशनी ।   @नील पदम्              

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संतोष

20 October 2023
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मीठा फल संतोष का, आगे बढ़कर खाए, स्वाद बहुत मीठा लगे, दूजे को न मन ललचाए । @नील पदम् 

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मन हो साथ

20 October 2023
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साथ सुहाना तब कहो,  जब मन साथ में होय,  मन भटके कहुं और तो,  साथ साथ न होय ।   @नील पदम्                 

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पढ़ना

20 October 2023
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पता नहीं कब सच कहा उसने,  पता नहीं कब झूठ बोला उसने,  उसकी आँखों को कभी पढ़ा ही नहीं,  क्योंकि कभी गौर से देखा नहीं हमने।   

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सफ़ीने

20 October 2023
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दुनिया के सफीनों को,  कागज पर बिठा दो तुम,  कागज के सफीनों को,  दरिया में उतरना है ।   @नील पदम्                 

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अभी भी

20 October 2023
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अभी भी मैं,  उसकी नज़र में हूँ मुसलसल, पर अभी भी वही कि,  न ये प्यार नहीं ।   @नील पदम्                   

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भोर

20 October 2023
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भोर होते ही कुछ  मुस्कुराये वो,  संताप स्वप्नों में छोड़ आये वो,  वो पिछली दिनों के गीले रूमालों को, गुजरे कल में ही छोड़ आये वो ।              @नील पदम्       

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इतने भरे हुए थे वो

20 October 2023
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इतने भरे हुए थे वो  कि छलकने ही वाले थे,  बड़ी मशक्कतों-मुश्किल से आँसुओं को सम्भाले थे,  उनकी उस दुखती राग पर ही  हाथ रख दिया जालिम,  जिसकी वजह से उसके दिल में पड़े छाले थे ।   @नील पदम्   

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भरे-भरे

20 October 2023
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कुछ भरे-भरे से हैं हम, ये जान कर,  वो भी भर आये,  मुझे अपना मान कर,  और भर लिया हमें अपने आलिंगन में अपने,  हम और भी भर आये,  इतना पहचान कर ।   @नील पदम्                             

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दर्द

20 October 2023
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दर्द से इस कदर तड़प रहा था वो कि,   अपना दर्द भूल कर उसको दवा दे दी,    इस तरह तो कुछ ऐसा हुआ कि, जज को किसी मुल्जिम ने सजा दे दी ।   @नील पदम्                                

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सुनो

20 October 2023
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सुनो,  बहुत दुष्कर है तुम्हारे लिए,  मुझे स्पर्श कर पाना,  तब जबकि मैं मुझ सा मुझमें हूँ ।  और,  असंभव है तब तो,  जब मैं  मुझ सा, तुझमें हूँ ।   @नील पदम्          

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कैद

20 October 2023
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वो अब कभी  किसी भी गली में  दिख नहीं सकते भटकते आवारा,  कैद कर लिया है अब उनको,  दिल के कारागारों में हमने ।   @नील पदम्               

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नहीं

20 October 2023
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तब कहती थीं कि नहीं,  अभी कुछ भी नहीं, अब कहती हो की नहीं, अब कुछ भी नहीं, सच कब बोला तुमने,  अब या तब, झूठ कब कहा तुमने, अब या तब । @नील पदम् 

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नाम सुधार

20 October 2023
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मैं तुझे ज़िन्दगी पुकारूँगा,  मैं तेरा नाम कुछ सुधारूँगा ।   @नील पदम्           

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अजनबी

20 October 2023
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जब अजनबी से बढ़ी नजदीकियां, तो जाना कि कितना है अजनबी वो ।   @नील पदम्   

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निकल

20 October 2023
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शतरंज की बिसात सी बनी है ज़िन्दगी, खुली हुई क़िताब के मानिंद कर निकल। भूल जा हर तलब, हर इक नशा औ जख्म, अब तो बस एक रब का तलबगार बन निकल। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्” 

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मिज़ाज़

20 October 2023
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कांटों का काम है चुभते रहना, उनका अपना मिज़ाज होता है, चुभन सहकर फिर भी सीने में, कोई गुल उसका साथ देता है । @ नील पदम् 1  

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महामारी

20 October 2023
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काल के कुचक्र के रौंदें हुए हैं हम,  महामारियों के दौर में पैदा हुए हैं हम,  पर्यावरण,  पृथ्वी, आवो-हवा से हमें क्या,  बस  खोखले विकास में बहरे हुए हैं हम  ।             @नील पदम्             

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उनका व्यापार

20 October 2023
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तेरा नाम नहीं लेंगे  पर तू ही निशाना है, तेरे भरोसे उन्हें, व्यापार चलाना है ।    @नील पदम्      

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दौर

20 October 2023
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है दौर चला कैसा, है किसकी कदर देखो, पैसों की सिगरेट है, मक्कार धुआं देखो। सीधे-सरल लोगों की दाल नहीं गलती, अब टेढ़ी उंगली है हर सीधी जगह देखो । @नील पदम् 

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आँखें

20 October 2023
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काली अंधियारी रात में  चाँद का टुकड़ा जैसे,  रोती रेत के बीच में हरियाली का मुखड़ा जैसे, जब तूने खोल कर अपनी  सुरमई आँखों से देखा, मुझे ऐसा ही कुछ लगा था  उस वक़्त विल्कुल ऐसे ।      @नील प

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स्वार्थ

20 October 2023
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स्वार्थ के पेड़ पर  जब लोभ भी चढ़ जाता है,  जंगल के गीत सबसे ज्यादा  लकड़हारा गाता है ।  @नील पदम्   

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शराब

20 October 2023
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बादा का वादा था, लेकिन जाम आधा था,  पूरा भरकर ले आते,  मेरा पूरा का इरादा था ।  @नील पदम्  बादा = शराब                      

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काहे का रोना

20 October 2023
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जो हो रहा है, जब होना वही है,  तो काहे का रोना, जो होना नहीं है ।  @नील पदम्                    

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सुप्त

20 October 2023
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वो करेंगे क्या भला, दो कदम जो न चला, जागने की हो घड़ी पर सुप्त है।  @नील पदम्    

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सीढ़ियाँ

20 October 2023
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सीढियां जो न चढ़ा,  रह गया वहीं खड़ा, वो देखते ही देखते विलुप्त है।  @नील पदम्     

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मातृ-शक्ति

20 October 2023
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कट गईं हैं बेड़ियाँ,  सब हटी हैं रूढ़ियाँ, अब पुरुषों से आगे  मातृ-शक्ति है।   @नील पदम्    

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ये कदम रुके नहीं

20 October 2023
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ये कदम रुके नहीं,  अब कभी थके नहीं, आसमान की परिक्रमा ही  लक्ष्य है।  @नील पदम्    

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नवीन धाराओं का सृजन

20 October 2023
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धारायें बदली गईं, भारत के नए विधान,  गौरव से मन पूर्ण है, इतना सुन्दर काम ।                 धाराये बदली गईं, नूतन नव-परिधान, चलो-चलो इतना हुआ, अपने हुए विधान ।        दासता के पीठ

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साथ दो कदम

20 October 2023
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साथ था दो कदम, छाले पैरों में हैं, पूरी दुनिया भली, पर हम गैरों में हैं। किस तरह हम मुक़दमा बिठाएं यहाँ, हम तो आज़ाद हैं, पर वो पहरों में हैं। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"      

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दीप तो जल गए

20 October 2023
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कैसे हम बोल दें, वो लाख चेहरों में हैं, दीप हमने जलाये अंधेरों में हैं, दीप तो जल गए , उनको दिखते  नहीं, ज्यों कड़ी धूप हो, वो दोपहरों में हैं। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्" 1

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तिजारत

20 October 2023
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शब्दों की तिजारत तुम हज़ार बातें कह लो, मैं बुरा न मानूंगा, ये प्यार है, कोई शब्दों की तिजारत नहीं। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"        

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नव धारायें

31 October 2023
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धारायें बदली गईं, भारत के नए विधान,  गौरव से मन पूर्ण है, इतना सुन्दर काम ।                 धाराये बदली गईं, नूतन नव-परिधान, चलो-चलो इतना हुआ, अपने हुए विधान ।        दासता के पीठ पर, खुरचे ह

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धूल में नहाये लोग

31 October 2023
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क्या देखे हैं कभी? धूल में नहाये लोग, जमीन के नीचे से उठकर जब तक नहीं छूने लगीं वो इमारतें, मीनारें, अट्टालिकाएं आकाश को, घेरे रहे उनको ये धूल में नहाये लोग ।। चेहरे बदलते रहे और वक़्त भी

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जरा संभल कर

31 October 2023
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ऐ भाई ! जरा देख कर चलो जरा संभल कर चलो पर उससे पहले जाग जाओ | कब तक आँखें बंद कर काटते रहोगे वही पेड़ जिस पर बैठे हो तुम, ऐसा तो नहीं कि आरी चलने की आवाज तुम्हें सुनाई नहीं देती, या तुम्हारी

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तुम लाख छुपाओ बात मगर

31 October 2023
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तुम लाख छुपाओ बात मगर,  कल सबको पता चल जाएगा, पत्ता, पत्थर, पानी, कंकड़, चीख़ चीख़ बतलायेगा । यह डर जो तुम्हारे दिल में है,  सब पता सरे-महफ़िल में है, खुलने वाला है ये राज अभी, जो राज अभी पर्दे

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बलिदानी सिपाही

31 October 2023
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बलिदानी सिपाही शूल सी चुभती हृदय में उस शिशु की चीत्कार है, जनक जिसका है सिपाही, करता वतन से प्यार है । जो अपनी मातृभूमि के सदके  जान अपनी कर गया, श्रृंगार-रत नवयौवना को श्वेत वसन दे गया; व

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मत कहो

31 October 2023
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मत कहो  नहीं, आज मुझसे कोई तस्वीर रंगने को मत कहो। क्योंकि, हर बार जब मैं ब्रश उठाता हूँ, और उसे  रंग के प्याले में डूबता हूँ; उस रंग को जब  कैनवास के  धरातल पर सजाता हूँ; तो सिर्फ एक ही

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हिसाब किताब

31 October 2023
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आज जब जमाने का हिसाब निकला, बस कसूर मेरा ही बेहिसाब निकला । @ नील पदम्  

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दिल की बात

31 October 2023
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अपने दिल की कोई जरा, हम बात क्या कह देते हैं। मेरी हर बात को झट, वो अपने पे ले लेते हैं ।। @नील पदम्  

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सुनो

31 October 2023
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सुनो, किसी भी सफर में रहना, फोन जरूर करते रहना, हालात, ठीक ना हों अगर, मिस्ड काल ही देते रहना। और हाँ, कहीं भी चले जाना, आवाज जरूर देते रहना, गर, ना मुमकिन हो पुकारना, मन ही मन याद कर लेन

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जब कभी

31 October 2023
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जब कभी ये वतन याद आये तुझे,  माटी ,  ममता,  मोहल्ला बुलाये तुझे, दो नयन मूंदना पुष्प चढ़ जायेंगे,  संग मिलेंगीं करोड़ों दुआयें तुझे ।     (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"       

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जता दीजिये

31 October 2023
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अपनी आँखों की चमक से डरा दीजिये उसे,  हँस के हर एक बात पर हरा दीजिये उसे,  पत्थर नहीं अगर तो मोम भी नहीं,  एक बार कसके घूरिये, जता दीजिये उसे ।         (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"  

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सवाल

31 October 2023
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जात-पात और धर्म लिखो करवाते रहो बवाल, आने वाली पीढ़ियां पूछेंगी कई सवाल॥ (c) @ दीपक  कुमार  श्रीवास्तव  " नील पदम् " 

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मायने

31 October 2023
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आजादी के देखो मायने, कैसे करे गए हैं अनर्थ, क्रांति के बलिदान सब, गए जाया हुए अब व्यर्थ । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"

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आजादी अबहूँ दूर

31 October 2023
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बहा पसीना व्यर्थ में,  रोया यदि मजदूर,  जाया उसका श्रम हुआ, पारितोषिक हो मजबूर, नहीं आजादी आई अभी,  समझो वो है अबहूँ दूर ।  (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"                  

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जंजीरें

31 October 2023
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जब  मातृभूमि को माँ माना था अशफाक, भगत, बोस से जाना था ये गाँधीजी ने भी माना था कि भारत माँ आजाद करें हम गुलामी की जंजीरों से । लेकिन भूल गये तुम सब-कुछ माँ की स्तुति मंजूर नहीं है मैं मानू

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मीठा

31 October 2023
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मीठा खाय जग मुआ, तीखे मरे ना कोय, लेकिन तीखे बोल ते, मरे संखिया सोय ॥ @नील पदम्   

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नींद और ख्वाब

31 October 2023
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कुछ नींदों से ख़्वाब उड़ जाते हैं                 और कुछ ख़्वाबों से नींदें उड़ जातीं हैं @नील पदम्  

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मन में जैसा घटेगा

31 October 2023
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मन में जैसा घटेगा क्यों लिखूँ, सिर्फ छंदबद्ध तुकांत कविताऐँ । आपकी सलाह- आपके मशविरा का शुक्रिया, आपकी डांट भी सर-माथे पर लेकिन माफ़ कीजियेगा ये जो मात्राएँ और तुक नापते हुए चलते हैं जब तो

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इंसानियत

31 October 2023
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क्यों इंसानियत के क़त्ल हो रहे हैं हर जगह, मजहब-ए-इंसानियत को कोई मानता नहीं, मशरूफ हैं औरों के हक पर निगाहें गड़ी  हुईं,    कोई  अपने हक की बात क्यों जानता नहीं ।   @नील पदम्         

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इसरो का आदित्य

31 October 2023
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वो करेंगे क्या भला, दो कदम जो न चला,  जागने की हो घड़ी पर सुप्त है।                सीढियां जो न चढ़ा,  रह गया वहीं खड़ा,  वो देखते ही देखते विलुप्त है।  पर उधर भी देखिये,  हो सके तो सीखिये,  विज्ञान

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लौह पुरुष

31 October 2023
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आजाद हुए थे जिस दिन हम  टुकड़ों में देश के हिस्से थे,  हर टुकड़ा एक स्वघोषित देश   था छिन्न-भिन्न भारत का वेश।     तब तुम उठे भुज दंड उठा भाव तभी स्वदेश का जगा  सही मायने पाए निज देश।  थी गूढ़

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गुरु

31 October 2023
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शब्द ही सबसे बड़े गुरु हैं,  शर्त है मन छप जायें, मीठे ते अनुकूल करे,  कड़वे भी देत मिलाय , किसी  तरह का  शब्द बाण मन के अंदर गड़ जाये, चेला बाद में सोचता, जब जीवन ध्येय वो  पाये ।            @नी

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नई जगह ढूँढ लो

31 October 2023
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तुम अब घर से बाहर भी मत निकलना और तुम मत अब घर के भीतर भी रहना । मत सोचना कि चंद्र और सूर्य में या फिर इस पृथ्वी  पर भी एक देश में,  किसी शहर में किसी गांव  में  या मोहल्ले में या फिर किसी मक

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कृष्ण छवि

31 October 2023
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कृष्ण छवि  को निहारता मैं,  बांके बिहारी धाम रे,  कौन बताएगा मुझे अब,  क्या है हमारा नाम रे ।  अस्तित्व सम्मिलित हो गया, प्रभुजी के ही नाम में,  कैसे कहूँ कृष्णा अलग,  और है अलग मेरा नाम रे ॥      

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कहाँ छिपा है

31 October 2023
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कृष्णा मुझे बता दे  जाकर कहाँ छिपा है,  घंटे हैं चार बीते मैया को न दिखा है,             मैया को सब पता है तेरी शैतानियाँ बहुत हैं,  नादान बचपने की  कहानियाँ बहुत हैं ।   @नील पदम्       

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कृष्णा तुम्हारी बँसी

31 October 2023
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कृष्णा तुम्हारी  बँसी, सबको लगे पुकारे,  जिसने भी इसे सुना है, कहे नाम है हमारे ।   @नील पदम् 

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मलाल

31 October 2023
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ख्वाहिशों के कितने भी पूरे हुए मुक़ाम, अगली को उठ खड़ा हुआ मन में नया मलाल । @नील पदम्   

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शांत और ठण्डी राख़ - दिनकर से प्रेरित रचना

31 October 2023
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जनता सहती सबकुछ चुपचाप, जैसे शांत और ठण्डी राख़, होम राष्ट्र-हित करती निज हित, किन्तु रहा उसे सब विदित, सदियों तक बहलाई तुमने निज हित ली अंगड़ाई तुमने, चार दिनों के चार खिलौने, कई दशक दिखलाये तुम

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बेटियाँ

31 October 2023
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मेरी प्यारी सी बच्ची, पहले बसंत की प्रतीक्षा में, लेटी हुई एक खाट पर मेरे घर के आँगन में। प्रकृति की पवित्र प्रतिकृति एकदम शान्त, एकदम निर्दोष अवतरित मेरे घर परमात्मा की अनुपम कृति। देखती टुकु

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मैं पुरखों के घर आया था

31 October 2023
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पता पिता से पाया था मैं पुरखों के घर आया था एक गाँव के बीच बसा पर उसे अकेला पाया था । माँ बाबू से हम सुनते थे उस घर के कितने किस्से थे भूले नहीं कभी भी पापा क्यों नहीं भूले पाया था । ज

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तुम्हें तो बस

31 October 2023
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कितनी भी चौड़ी दरार हो,  तुमको तो बस कि नहीं हार हो,  किसी भी हद तक भाड़ में जाएँ, हाथ  उपहार, गले में हार हो ।   (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"       

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त्रासदी

31 October 2023
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सृष्टि  ने जो रच दिया, सब उसको रहे बिगाड़, तभी सृष्टि-दृग तीसरी, सब छन में करत कबाड़ । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"  

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त्रासदी

31 October 2023
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काट दिए सब पेड़ औ, सब पर्वत दिए उखाड़, धरती का पानी सोखकर, मिट्टी भी दई उजाड़ । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"  

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त्रासदी

31 October 2023
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नदियों में घोला जहर,  वन में लगाई आग,  वो दिन अब न दूर हैं,  कोसत रहियो भाग । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"                   

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त्रासदी

31 October 2023
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जहरीली कर दी हवा, प्रतिदिन गरल मिलाय, कैसे-कैसे कर्म हैं, मानवता मिट जाए। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"  

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हे ईश्वर अवतार लो

31 October 2023
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क्या वजह करते फिरें  क्यों वो राक्षसी कृत्य  मानव को मानव खा रहा  करते  दानवी  नृत्य।  आखिर क्या इनको चाहिए  पूछो  इनसे  जाय, कौन सी इनकी सोच है  जो मानवता को खाय। आतंकी ये सोच राक्षसी  क

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Shri Ram

21 January 2024
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देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से सभी जुटे हैं काम में ।  कौन राम जो वन को गए थे, छोटे भईया लखन संग थे, पत्नी सीता मैया भी पीछे, रहती क्यों इस क

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सौगंध से अंजाम तक

22 February 2024
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चल पड़े जान को, हम हथेली पर रख, एक सौगंध से, एक अंजाम तक । उसके माथे का टीका, सलामत रहे, सरहदें भी वतन की, सलामत रहें, जान से जान के, जान जाने तलक, जान अर्पण करूँ, जान जायेंगे सब,

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प्रयास

22 February 2024
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है चन्द्र छिपा कबसे, बैठा सूरज के पीछे, लम्बी सी अमावस को, पूनम से सजाना है। चमकाना है अपनी, हस्ती को इस हद तक, कि सूरज को भी हमसे, फीका पड़ जाना है। ये आग जो बाकी है, उसका तो नियंत्रण ही, थोडा सा

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सत्य होता सामने

26 March 2024
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सत्य होता सामने तो, क्यों मगर दिखता नहीं, क्यों सबूतों की ज़रूरत पड़ती सदा ही सत्य को। झूठी दलीलें झूठ की क्यों प्रभावी हैं अधिक, डगमगाता सत्य पर, न झूठ शरमाता तनिक। सत्य क्यों होता प्रताड़ित गु

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