अग्निर्होता कविक्रतुः सत्यश्चित्रश्रवस्तमः । देवो देवेभिरा गमत्॥
May Agni,
sapient-minded
Priest,
truthful,
most gloriously
great,
The God,
come hither
with the Gods.
हे अग्नि तुम ईश्वर सम हो,
बल्कि तुम्हीं तो वो ईश्वर हो,
करो प्रकाशित वो गुण तुमसे
तुम्हीं दिव्यता का सुख हो ।
सत्कार्य करें तो तुम प्रेरक हो,
सभी कर्मों के उत्प्रेरक भी हो,
सत्कर्मों से ज्ञान की युति जब हो,
असंभव भी तब तो संभव हो ।