स नः पितेव सूनवेऽग्ने सूपायनो भव । सचस्वा नः स्वस्तये॥
हे गार्हपत्य अग्ने ! जिस प्रकार पुत्र को पिता (बिना बाधा के) सहज ही प्राप्त होता है, उसी प्रकार आप भी (हम यजमानों के लिये) बाधारहित होकर सुखपूर्वक प्राप्त हों। आप हमारे कल्याण के लिये हमारे निकट रहें॥
Be to us easy of approach, even as a father to his son: Agni, be with us for our weal.
मेरे अनुसार इस श्लोक में अग्नि अर्थात की उपमा एक पिता से की गई है। ईश्वर के समक्ष एक पुत्र के जैसे समर्पित होने का भाव अद्भुत है। हे ईश्वर जिस प्रकार एक पिता अपने पुत्र को सर्वथा सुलभ होता हैं वैसे ही आप मुझे सुलभ हो। जिस प्रकार पिता अपने पुत्र को सदैव सद्गुण युक्त और सत्कर्मों हेतु प्रेरित करने हेतु प्रयास करता है ठीक उसी प्रकार हे ईश्वर आप हमारे कल्याण को सदैव हमारे निकट रहें। आपकी शिक्षा और पालन पोषण बिलकुल ऐसा हो जिस एक पिता का होता है।
O God ! Please be with me always. Be always easily available as father
is always available to his son. As father always thrive to inculcate best
habits in his son so that his son is always on correct path, it is my prayer
that you be with me always near to me.
हे जगतपिता, रहो साथ हमारे
जैसे हो तुम पिता हमारे,
पितृ-सदृश्य ही कल्याण करो तुम,
हर पल, हर दिन साथ रहो तुम,
सद्गुणों से हों ओत-प्रोत हम,
सत्कर्मों की राह चलें हम,
उँगली पकड़ो पिता के जैसे,
कहो भला फिर भटकें कैसे,
मैं प्यासा यदि तुम पनघट हो,
तुम हरपल यदि मेरे निकट हो।
(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"