मुझे याद हैं सभी किस्से वो इश्क़ का ज़माना!
कभी रूठना वो उनका कभी उनका वो मनाना!
मुझे तल्ख़ लहजा बचपन से नहीं पसंद सुन लो,
मुझे देके धीमी आवाज़ ए जाने जाँ बुलाना!
इसे दोस्ताना तुम मशवरा समझो या वसिय्यत,
मिरे बाद भी इसी तर्ह है तुम को मुस्कुराना!
मिरा काम है कुछ ऐसा कि है जाना सब जगह पर,
मिरा इक जगह नहीं होता है मुस्तक़िल ठिकाना!
किसी बातका यकीं करलिया क्या तुम्हारी इकदिन,
ये तुम्हारा रोज़ का बन गया है नया बहाना!
हुआ क्या है किस लिए मन को बदल लिया तुमने,
मिरा सोच लेना पहले जो किसी से दिल लगाना!
सुना है लकी किसी ग़ैर के होने वाले हो तुम,
इसे समझूँ मैं हक़ीक़त या है कोई ये फसाना!
सग़ीर 'लकी'