तुम्हारी आँख में ठहरा हुआ हूँ!
कभी आँसू कभी सपना हुआ हूँ!
मैं किसके हाथ की ज़ीनत बनूँगा,
हिनाई शाख़ से टूटा हुआ हूँ!
तेरे दिल में जगह अपनी बना ली,
मैं ख़ुश्बू की तरह फैला हुआ हूँँ!
समेटे आ के माला ही बना ले,
मैं बासी फूल सा बिखरा हुआ हूँ!
कोई सिलवट नहीं है बिस्तरों पर,
कई रातों का मैं जागा हुआ हूँ!
मुहब्बत की कशिश भारी पड़ी है,
तुम्हारे शह्र में आया हुआ हूँ!
यहाँ कोई नहीं होता किसी का,
ख़ुशी तंगी से भी गुज़रा हुआ हूँ!
नहीं कुछ होश बाक़ी है ज़रा भी,
मुहब्बत में दिवानों सा हुआ हूँ!
अबस बच्चा समझते हैं अभी तक,
मैं हर इक दौर से गुज़रा हुआ हूँ!
जिसे वालिद की शफक़त मानतेहो,
मैं उसकी छाँव में बैठा हुआ हूँ!*
अभी फुर्सत नहीं है कुछ 'लकी' जी,
बहुत से काम में उलझा हुआ हूँ!
सग़ीर लकी