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मेरा दिल ही मेरे पेहम नहीं है

24 June 2022

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मेरा  दिल   ही  मेरे   पैहम  नहीं है!
मैं  कैसै  कह  दूँ  कोई  ग़म नहीं है!

बड़ी  नरमी से  तुम हो  पेश  आते,
तुम्हारी ज़ुल्फ  में क्या ख़म नहीं है!

मुझे  सीने  से जो  अपने  लगा  ले,
यहाँ  ऐसा  कोई   हमदम  नहीं  है!

मुहब्बत   से  हमें   क्यों  देखते  हो,
अभी  तो  प्यार का  मौसम नहीं है!

जुदाई   में  तुम्हारी  मर   ही  जाऊँ,
अब इतना भी बड़ा  ये ग़म नहीं है!

दवा मिलती  है यूँ तो हर मरज़ की,
मिरे ज़ख्मों का कुछ मरहम नहीं है!

ख़मोशी  को  हमारी  देख  कर  वो,
समझते हैंकि अब दम ख़म नहीं है!

सहारा   गै़र   का   लेते  हो  हरदम,
तुम्हारे   बाज़ुओं   में   दम  नहीं है!

ये पतझड़ का ज़माना है लकी जी,
बहारों   का  अभी  मौसम  नहीं है!

सग़ीर लकीarticle-image



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