जाने और अनजाने में बस तिरा नाम पुकारा करते हैं!
अक्सर ही दीवारों पर तिरी तस्वीर उतारा करते हैं!
आतिश ए इश्क़ने बख़्शे हमारी रूहको छालेगहरे ज़ख़्म,
अपनी तनहाई में हम अक्सर ज़िक्र तुम्हारा करते हैं!
दिल की लगी ऐसी होती है कूचे-कूचे फिरते हैं हम,
सहरा में बयाबाँ में बन के दीवाना पुकारा करते हैं!
ग़ैरों के मुर्ग़ मुसल्लम पर हम ध्यान कभी देते ही नहीं,
रूखी सूखी में ही ख़ुश होकर अपना गुज़ारा करते हैं!
एक सदा सी आती है अक्सर तन्हाई में कानों में,
दे के आवाज़ मुझे जैसे कुछ लोग पुकारा करते हैं!
तुम हार गए हिम्मत अपनी थक हार के शायद बैठ गए,
आओ चलो उट्ठो तो सही फिर से कोशिश यारा करते हैं!
अपनी प्यारी सूरत पे होते हैं वो निछावर बारम्बार,
आईना मिल जाए लकी गर वो पहरों निहारा करते हैं!
सग़ीर 'लकी'