तू मेरी जान है लख़्ते जिगर है!
तभी तो हर घड़ी ज़ेरे नज़र है!
हक़ीक़त पूछते हो तो सुनो फिर,
तुम्हीं से ज़िन्दगी ये मोतबर है!
ये बढ़ता जा रहा है रोग अपना,
दुआ में हो रहा थोड़ा असर है!
बहुत बेकैफ दिन कटते हैं मेरे,
अकेली ज़िन्दगी तन्हा सफर है!
ख़ुदा महफूज़ रक्खे हर बला से,
कहा किसने हवा का ये असर है!
बड़ा है बोल तो अल्लाह तौबा,
हमे भी शेअ्र कहने का हुनर है!
सभी की आँख माना फिर गई है,
मिरे ग़म से तू भी क्या बेखबर है!
बहुत रहता हूँ चौकन्ना लकी मैं,
कई लोगों की अब हम पे नज़र है!
सग़ीर लकी