मेरा हाल वो मेरी तबीयत क्या जाने!
कब सँभलेगी अपनी हालत क्या जाने!
वो जो पाई पाई का रखता है हिसाब,
ऐसा इंसाँ करना सख़ावत क्या जाने!
वो जब मिलता है तो अच्छे से करता बात,
बाद में क्यों करता है अदावत क्या जाने!
तीरे नज़र से घायल पंछी जैसा दिल,
कैसे करनी उसकी शिक़ायत क्या जाने!
बेवज्ह का इलज़ाम लगाया है इस पर,
यार अपना अमानत में ख़यानत क्याजाने!
हर जानिब भीड़ का सैलाब ही मिलता है,
राह में कितनी होगी मशक़्क़त क्या जाने!
बाहम ऐसा तज़ाद कभी देखा नहीं यार,
हो न पाए उस से कभी सहमत क्या जाने!
दिखने में तो बहुत सीधा सा दिखता था,
क्यों करने लगा सबसे अदावत क्या जाने!
जब के बिकने को लकी हो गया राज़ी भी,
वो लगाता नहीं क्योंअब क़ीमत क्या जाने!
सग़ीर लकी