अपनी बातों को ही मनवाया करता हूँ!
आईने से भी लड़जाया करता हूँ!
हुस्न और इश्क़ से ही दुनिया क़ायम है,
भँवरा बन फूलों को रिझाया करता हूँ!
तुझको सोचा करता हूँ तन्हाई में,
तस्वीर फिज़ाओं में बनाया करता हूँ!
फर्क नहीं रखता मैं अपने पराए में,
दुश्मन को भी दोस्त बनाया करता हूँ!
दिल का ज़ख़्म हरा रखना है बातों का,
रोज़ नमक मैं उन पे लगाया करता हूँ!
दिल का ही मत समझो सौदागर यारों,
आँखों से काजल भी चुराया करता हूँ!
तन्हाई से करना मुहब्बत खेल है क्या,
अपना ग़म मैं आप उठाया करता हूँ!
दिल तो दुखाता है वो मेरा अक़्सर ही,
फिर उल्टे मैं उसको मनाया करता हूँ!
माँ से पहले सा लिपटता हूँ आज भी मैं,
बच्चे जैसा फिर बन जाया करता हूँ!
आवारा फिरता हूँ कोई काम नहीं,
बैठा ग़म की आग बुझाया करता हूँ!
मुझ को कल ये काटेंगे है तय फिर भी,
साँप के बच्चों को दूध पिलाया करता हूँ!
तुम अपनी हरकत से बाज़ आओ वर्ना,
मैं दिन में भी तारे दिखाया करता हूंँ!
राज़ तो आख़िर राज़ लकी जी होता है,
मोती की तर्ह आँखों में छुपाया करता हूँ!
सग़ीर 'लकी'