समाना हृदयानि वः
स्वतन्त्रता – आज़ादी – व्यक्ति को जब उसके अपने ढंग से जीवंन जीने का अवसर प्राप्त होता है तो निश्चित रूप से उसका आत्मविश्वास बढ़ने के साथ ही उसमें कर्त्तव्यपरायणता की भावना भी बढ़ जाती है और उसकी सम्वेदनशीलता में भी वृद्धि होती है | क्योंकि स्वतन्त्र व्यक्ति को जीवन में रस का अनुभव होने लगता है – उत्साह और उमंग से भरा मन नृत्य करने लगता है – व्यक्ति को विकास की गति को तीव्र करने की सामर्थ्य प्राप्त होने के साथ ही उसे नियन्त्रित करने की समझ भी प्राप्त होती है – उसकी विचारधारा को सकारात्मक दिशा प्राप्त होती है – उसमें आत्मचिन्तन तथा आत्मनिर्णय की भावना दृढ़ होती है | जब व्यक्ति इस प्रकार से पूर्ण रूप से प्रफुल्लित होगा तो भला क्यों न वह अपना यह उत्साह – अपनी यह उमंग – अपने जीवन का ये रस – दूसरों के साथ बाँटने का इच्छुक होगा ? वह हर किसी के साथ एकता और बराबरी का व्यवहार स्वतः ही करने लग जाएगा | स्वतन्त्र व्यक्ति के मन में किसी प्रकार के भेद भाव के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता |
15 अगस्त, हमारे महान भारत देश का स्वतन्त्रता दिवस - अपने सहित सभी को हार्दिक बधाई कि अनगिनती बलिदानों के बाद हमें स्वतन्त्रता प्राप्त हुई और उसी का परिणाम है कि आज हम उन्मुक्त भाव से देश के कण कण को सुवासित करती हवा में साँस ले रहे हैं… जल थल आकाश की सारी सीमाएँ हमारे सीमा प्रहरियों द्वारा सुरक्षित हैं… स्वतन्त्र होने के ही कारण आज हमारे देश के जन जन में इतना अधिक आत्मविश्वास उत्पन्न हुआ है… निर्णायक क्षमता में इतनी अधिक वृद्धि हुई है कि आज हर भारतवासी देश की प्रगति के लिए अपनी अपनी सुविधा और योग्यता के अनुसार प्रयासरत है… अपनी इसी स्वतन्त्रता को हमें अक्षुण्ण बनाए रखना है…
हमें बहुत सारे मन्त्र वेदों में उपलब्ध होते हैं जिनमें सन्देश है कि स्वतन्त्र देश के नागरिकों को किस प्रकार से जीवमात्र के साथ समानता का और प्रेम का व्यवहार करते हुए जीवन यापन करना चाहिए… प्रस्तुत हैं उन्हीं में से कुछ के हिन्दी पद्य-भावानुवाद…
समानी व आकृति: समाना हृदयानि व:,
समानमस्तु वो मनो यथा व: सुसहासति
समानो मन्त्र: समिति: समानी, समानं मन: सहचित्तमेषाम् ।
समानं मन्त्रमभिमन्त्रयेव:, समानेन वो हविषा जुहोमि ॥ – ये ऋग्वेद के मन्त्र हैं, जिनका तात्पर्य है कि…
आदर्श एक हों हम सबके,
हृदयों में समानता सबके हो |
मन से मन मिले रहें सबके,
और बुद्धि सदा कल्याणी हो ||
सामाजिक समता बनी रहे,
ना कोई द्वेष या भेद रहे |
और बने देशहित में जो भी,
वह नीति समन्वयकारी हो ||
हम कार्य करें सब मिल जुल कर,
मन्त्रणा सभी की एक रहे |
बन्धुत्व विश्व में रहे, और
यज्ञों का पालन जग में हो ||
इसी तरह अथर्ववेद के मन्त्र हैं कि…
मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन्, मा स्वसारमुत स्वसासम्यञ्च: सव्रता भूत्वा वाचं वदत भद्रया ।|
जनं बिभ्रती बहुधा विवाचसं, नाना धर्माणां पृथिवी यथौकसम् |
सहस्रं धारा द्रविणस्य मे दुहां, ध्रुवेव धेनु: अनपस्फुरन्ती ||
भाई भाई में प्रेम भरा व्यवहार रहे नित |
बहनों में हो स्नेह सदा इस जग से न्यारा ||
हम सब लें संकल्प, लोक कल्याण करें हम |
और सदा अमृतयुत हो हर शब्द हमारा ||
विविध धर्म बहु भाषाओं का देश हमारा |
सबही का हो एक सरिस सुन्दर घर न्यारा ||
राष्ट्रभूमि पर सभी स्नेह से हिल मिल खेलें |
एक दिशा में बहे सभी की जीवनधारा ||
निश्चय जननी जन्मभूमि यह कामधेनु सम |
सबको देगी सम्पति, दूध, पूत धन प्यारा ||
हमारे वैदिक ऋषियों ने किस प्रकार के परिवार, समाज और राष्ट्र की कल्पना की थी – एक राष्ट्र एक परिवार की कल्पना – ये कुछ मन्त्र इसी कामना का – इसी कल्पना का एक छोटा सा उदाहरण हैं…
विविध धर्म और भाषाओं के इस आँगन में
सरस नेह में पगी हुई हम ज्योति जला लें |
मातृभूमि के हरे भरे सुन्दर उपवन में
आओ मिलकर सद्भावों के पुष्प खिला लें ||
वैदिक ऋषियों की इस उदात्त कल्पना को हम अपने जीवन का लक्ष्य बनाने का संकल्प लें और सब साथ मिलकर स्वतन्त्रता का यह पुनीत पर्व मनाएँ… अपने साथ सभी को स्वतन्त्रता की वर्षगांठ पर हार्दिक शुभकामनाएं...
----- कात्यायनी