अनन्त चतुर्दशी
अनंन्तसागरमहासमुद्रेमग्नान्समभ्युद्धरवासुदेव |
अनंतरूपेविनियोजितात्माह्यनन्तरूपायनमोनमस्ते ||
भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को अनन्त अर्थात जिसका कभी अन्त न हो - चतुर्दशी कहा जाता है | इस वर्ष सोमवार 16 सितम्बर को दोपहर में तीन बजकर 11 मिनट के लगभग चतुर्दशी तिथि का आगमन होगा जो 17 को प्रातः 11:45 तक रहेगी, और उसके बाद 18 को प्रातः 8:5 तक पूर्णिमा तिथि रहेगी | अतः अनन्त चतुर्दशी की पूजा और गणपति विसर्जन 17 को ही किया जाएगा, और इसी दिन पूर्णिमा का श्राद्ध भी किया जाएगा | साथ ही इसी दिन दिगम्बर जैन समाज के दशलाक्षण पर्वका भी समापन हो रहा है | सर्वप्रथम सभी को अनन्त चतुर्दशी, गणेश विसर्जन और दशलाक्षण पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ…
कहा जाता है कि जब पाण्डव द्यूत क्रीड़ा में अपना सर्वस्व हारकर वनों में कष्ट भोग रहे थे उस समय भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें अनन्त चतुर्दशी का व्रत करने का सुझाव दिया था | धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रौपदीके साथ पूरे विधि-विधान से यह व्रत किया तथा अनन्त सूत्र धारण किया | जिसके कारण उनके सभी संकट समाप्त हो गए | यह व्रत किसी जलाशय के निकट किया जाने का विधान है | किन्तु यदि ऐसा सम्भव न हो तो अपने निवास पर भी इस व्रत को किया जा सकता है | इस दिन भगवान विष्णु के अनन्त रूप की पूजा अनन्त सूत्र के रूप में की जाती है | चातुर्मास में भगवान विष्णु शेषनाग पर अनन्त निद्रा में निमग्न हो जाते हैं इसलिए शेषनाग को अनन्त भगवान भी कहा जाता है |
भगवान विष्णु की पूजा अर्चना के बाद एक कच्चे रेशम की डोरी को हल्दी अथवा केसर में रंगकर उसमें चौदह गाँठ लगाई जाती हैं और हर गांठ के साथ भगवान के चौदह नामों - अनन्त, श्री हरि, ऋषिकेश, पद्मनाभ, माधव, वैकुण्ठ, श्रीधर, त्रिविक्रम, मधुसूदन, वामन, केशव, नारायण, दामोदर और गोविन्द - का जाप किया जाता है | तत्पश्चात इस रक्षा सूत्र को श्री हरि को समर्पित किया जाता है | इसकी पूजा करके "ॐ अनन्ताय नमः" मन्त्र का जाप करते हुए इसे दाहिने हाथ पर बाँधने की प्रथा है | धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये चौदह ग्रन्थियां चौदह भुवनों अर्थात लोकों की प्रतीक होती हैं | ये चौदह भुवन इस प्रकार हैं - भूू:, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः, ब्रह्म, अतल, वितल, सुतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल | इस प्रकार ईश्वर से चौदह भुवनों की सुख समृद्धि की प्रार्थना भी की जाती है | और भी बहुत सारी कथाएं और मान्यताएं इस सम्बन्ध में उपलब्ध होती हैं, किन्तु मूल रूप से अनन्त चतुर्दशी और अनन्त सूत्र का उल्लेख अग्नि पुराण और महाभारत में उपलब्ध होता है |
जैन धर्म में भी अनन्त चतुर्दशी का बहुत महत्त्व है | इस दिन चौदहवें तीर्थंकर अनन्तनाथ की पूजा :ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथ जिनेंद्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा” अथवा “ॐ ह्रीं अर्हं हं स: अनन्त केवलिभ्यो नम:” अथवा “ॐ नमोSर्हते भगवते अणंताणंतसिज्झधम्मे भगवतो महाविज्जा-महाविज्जा अणंताणंतकेवलिए अणंतकेवलणाणे अणंतकेवलदंसणेअणुपुज्जवासणे अणंते अणंतागमकेवली स्वाहा” मन्त्र से की जाती है | चौदह वर्षों तक हर वर्ष अनन्त चतुर्दशी का व्रत करके इसका समापन उद्यापन किया जाता है |
गणेश चतुर्थी और गणेश विसर्जन के सम्बन्ध में मान्यता है कि महर्षि वेदव्यास ने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को श्री गणेश को दस दिनों के लिए महाभारत की कथा सुनानी आरम्भ की थी जिसे गणेश जी साथ साथ लिखते चले गए थे | इसी के प्रतीक स्वरूप भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी का आह्वाहन और स्थापन किया जाता है और दस दिनों के बाद यानी भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी को पुनः आगमन की प्रार्थना के साथ विसर्जन किया जाता है |
कथाएँ और मान्यताएँ चाहे जितनी भी हों, भगवान विष्णु, भगवान अनन्तनाथ और ऋद्धि सिद्धि दाता भगवान श्री गणेश सभी का कल्याण करें यही कामना है… सभी को अनन्त चतुर्दशी और गणेश विसर्जन की एक बार पुनः अग्रिम हार्दिक शुभकामनाएँ…
----- कात्यायनी