रात के लगभग आठ बज चुके थे। हर्ष ने बताया,‘‘डॉक्टर साहब नेहा को कल सुबह अस्पताल से छुट्टी देंगे। इसलिए आज रातभर यहाँ रुकना पड़ेगा।‘‘ फिर आगे अपनी कुछ नाराजगी जताते हुए कहा,‘‘एक तो यहाँ दिन भर में दो वक्त भोजन मिलता है लेकिन वो भी समय से नहीं। जब तक भोजन बनकर आता तब तक तो जान निकल जायेगी। यदि हम यहाँ खाने की व्यवस्था स्वयं न करते तो जी नहीं पाते। सिर्फ अस्पताल के कैन्टीन के भरोसे रहना ठीक नहीं है।‘‘
आनन्द ने कहा,‘‘अच्छा, तो ये बात है। बेटा हर्ष, तुम अब घर चलो। जिस सामान की यहाँ जरूरत नहीं है उसे ले लो। फिलहाल नेहा और होरीला को देखने के लिए प्रीतम, सुमित्रा और मीरा यहाँ रहेंगे।‘‘
झोले में कुछ सामान लेकर हर्ष फूलमती, आनन्द और कमल के साथ कार की ओर चल पड़ा। प्रीतम भी कार तक छोड़ने के लिए साथ हो लिया। रास्ते में चलते हुए सबका ध्यान अनायास ही अस्पताल की नई इमारतों, पुरानी इमारतों और टूट चुकी इमारतों पर चला गया। अस्पताल में कई वर्षों के बाद आने पर कई तरह के मूलभूत ढाँचों में परिवर्तन देखने को मिला।
फूलमती ने कहा,‘‘यह अस्पताल कितना बदल गया है!‘‘
सबने हाँ सिर हिलाया। तब तक वे कार तक पहुँच चुके थे फिर हर्ष, फूलमती और कमल कार में बैठ गये। आनन्द कार की स्टियरिंग पर बैठते हुए प्रीतम को अलविदा कहते हुए गाड़ी चालू कर दिया। प्रीतम ने यथास्थान खड़े होकर सबको टाटा किया। गाड़ी गंतव्य स्थान की ओर चल पड़ी।
अभी कुछ दूर चले ही थे कि कार का पहिया सड़क पर एक छोटे से गड्ढे में घुसकर निकल गया पर एक बड़ा सा कंकड़ छटककर गाड़ी के निचले हिस्से से टकरा गया। हालांकि कुछ ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था तो आनन्द गाड़ी लेकर आगे बढ़ता रहा।
क्रमशः आगे...9