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कुँवारे नाना जी

4 October 2024

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रात के लगभग आठ बज चुके थे। हर्ष ने बताया,‘‘डॉक्टर साहब नेहा को कल सुबह अस्पताल से छुट्टी देंगे। इसलिए आज रातभर यहाँ रुकना पड़ेगा।‘‘ फिर आगे अपनी कुछ नाराजगी जताते हुए कहा,‘‘एक तो यहाँ दिन भर में दो वक्त भोजन मिलता है लेकिन वो भी समय से नहीं। जब तक भोजन बनकर आता तब तक तो जान निकल जायेगी। यदि हम यहाँ खाने की व्यवस्था स्वयं न करते तो जी नहीं पाते। सिर्फ अस्पताल के कैन्टीन के भरोसे रहना ठीक नहीं है।‘‘

आनन्द ने कहा,‘‘अच्छा, तो ये बात है। बेटा हर्ष, तुम अब घर चलो। जिस सामान की यहाँ जरूरत नहीं है उसे ले लो। फिलहाल नेहा और होरीला को देखने के लिए प्रीतम, सुमित्रा और मीरा यहाँ रहेंगे।‘‘


 झोले में कुछ सामान लेकर हर्ष फूलमती, आनन्द और कमल के साथ कार की ओर चल पड़ा। प्रीतम भी कार तक छोड़ने के लिए साथ हो लिया। रास्ते में चलते हुए सबका ध्यान अनायास ही अस्पताल की नई इमारतों, पुरानी इमारतों और टूट चुकी इमारतों पर चला गया। अस्पताल में कई वर्षों के बाद आने पर कई तरह के मूलभूत ढाँचों में परिवर्तन देखने को मिला। 


फूलमती ने कहा,‘‘यह अस्पताल कितना बदल गया है!‘‘

सबने हाँ सिर हिलाया। तब तक वे कार तक पहुँच चुके थे फिर हर्ष, फूलमती और कमल कार में बैठ गये। आनन्द कार की स्टियरिंग पर बैठते हुए प्रीतम को अलविदा कहते हुए गाड़ी चालू कर दिया। प्रीतम ने यथास्थान खड़े होकर सबको टाटा किया। गाड़ी गंतव्य स्थान की ओर चल पड़ी। 


अभी कुछ दूर चले ही थे कि कार का पहिया सड़क पर एक छोटे से गड्ढे में घुसकर निकल गया पर एक बड़ा सा कंकड़ छटककर गाड़ी के निचले हिस्से से टकरा गया। हालांकि कुछ ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था तो आनन्द गाड़ी लेकर आगे बढ़ता रहा।

क्रमशः आगे...9

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कुँवारे नाना जी
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यह कहानी एक नवयुवक, कमल की है जो कुँवारे रहते हुए रिश्ते से नाना जी बन जाता है! कमल के ह्रदय और मन में उठने वाले मनोभावों को प्रस्तुत किया गया है! तथा उसके प्रति अन्य व्यक्तियों के व्यवहार को भी दर्शाया गया है! इसके साथ ही कुछ परम्सापराओं व सामाजिक पहलुओं पर भी प्रकाश डाला गया है !
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शाम का समय था। कमल अपने कमरे में आराम कुर्सी पर आराम करने बैठा ही था कि थोड़ी ही देर बाद दरवाजे पर एक कार आकर रुकी। कार से लगातार हॉर्न की आवाज आने लगी। आवाज सुनकर कमल कार की तरफ आकर्षित हुआ तो पता चला

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अस्पताल के गेट के सामने उनकी कार रुकी और वे लोग अपने साथ लाये कुछ खाने-पीने का सामान लेकर वार्ड की तरफ चल दिये। तभी वार्ड के सामने खड़े शंकर की निगाह कमल पर पड़ी। कमल ख्यालों में खोये हुए आगे बढ़ता जा र

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कमरे में मरीजों के कई बिस्तर लगे हुए थे। और उनके परिजन आ-जा रहे थे। प्रवेश करते ही सामने वाले बिस्तर पर नेहा अपने नवजात शिशु के साथ बैठी फूलमती से बातें कर रही थी। बिस्तर के पास ही फर्श पर चटाई बिछाकर

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इस घटना को देख नेहा बोली,‘‘यह बच्चा भी न अभी से नखरे करना चालू कर दिया है। बहुत देर से सोया हुआ था। और जब जगा तो भी आँखें ही नहीं खोल रहा था। बस जब कोई नया व्यक्ति आ रहा है तो यह अपनी आँखें खोल रहा है

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कमल ने प्रीतम का हाथ नीचे करते हुए कहा,‘‘प्रीतम जी, आप क्यों चिंतित हो रहे हैं? बुढ़ापा तो मेरा आ गया है क्योंकि मैं नाना बन गया हूँ। अभी तो आप पिता ही बने हैं इसलिए घबराने की कोई बात नहीं है। अभी आप न

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कमरे में कड़कती हुई आवाज के साथ अस्पताल में काम करने वाली मुनरी का प्रवेश हुआ। उसने कमरे के अन्दर आते ही सबको डाँटना-फटकारना शुरू कर दिया। खाना खाते हुए लोगों से उसने कहा,‘‘आप लोग कमरे के बाहर चले जाइय

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कमल ने शिशु की तरफ इशारा करते हुए नेहा से कहा,‘‘क्या मैं इसकी फोटो खींच लूँ।‘‘ नेहा ने हामी भरते हुए व शिशु के कपड़ों को सही करते हुए कहा,‘‘हाँ-हाँ, क्यों नहीं। आप खींच लीजिए फोटो।‘‘ कमल ने फोटो खी

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रात के लगभग आठ बज चुके थे। हर्ष ने बताया,‘‘डॉक्टर साहब नेहा को कल सुबह अस्पताल से छुट्टी देंगे। इसलिए आज रातभर यहाँ रुकना पड़ेगा।‘‘ फिर आगे अपनी कुछ नाराजगी जताते हुए कहा,‘‘एक तो यहाँ दिन भर में दो वक्

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अपने बगल में आगे की सीट पर बैठे हुए कमल से आनन्द ने कहा,‘‘आपका शहर ठीक नहीं है। यहाँ की सड़कें बहुत खराब हैं। जहाँ देखिये वहाँ सड़क पर गड्ढे ही गड्ढे दिखाई देते हैं। ऐसा लगता है कि सड़क पर गड्ढे नहीं बल्

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