अपने बगल में आगे की सीट पर बैठे हुए कमल से आनन्द ने कहा,‘‘आपका शहर ठीक नहीं है। यहाँ की सड़कें बहुत खराब हैं। जहाँ देखिये वहाँ सड़क पर गड्ढे ही गड्ढे दिखाई देते हैं। ऐसा लगता है कि सड़क पर गड्ढे नहीं बल्कि गड्ढे में सड़क है। जहाँ सड़क कुछ ठीक है तो वहाँ धूल का गुबार नजर आता है और जहाँ पानी लगा है वहाँ कीचड़। इससे तो अच्छा अपना गाँव ही लगता है।‘‘
एक लम्बी साँस लेते हुए कमल ने आनन्द से कहा,‘‘जी हाँ भैया! आप सही कह रहे हैं लेकिन हम कर भी क्या सकते हैं? सरकार को बस जनता से टैक्स लेना आता है, जनता की मूलभूत व जरूरी सुविधाओं को पूरा करना नहीं। यदि आम जनता किसी कारणवश समय से कोई सरकारी भुगतान या टैक्स जमा नहीं कर पाती है तो सरकार को पेनाल्टी लगाते देर नहीं लगती। आजकल सत्ता की कुर्सी पर केवल सत्ता के लोभी नेता ही बैठ रहे हैं। आम जनता उन्हें अपना मसीहा मानकर चुनती है और सत्ता की कुर्सी उनको सौंप देती है। मगर सफेद पोशाक पहने नेता सिर्फ बाहर से ही उजले नजर आते हैं। वास्तव में वे अन्दर से कपटी और काले होते हैं क्योंकि कुर्सी पर बैठते ही वे आम जनता का न होकर कुछ खास लोगों और रिश्तेदारों तक ही सीमित हो जाते हैं। आम जनता का खयाल उनको सिर्फ चुनाव की तैयारी के समय आता है, वह भी वहीं जहाँ उनका वोट बैंक सबसे ज्यादा बनने की संभावना होती है।‘‘
शहर के भीड़-भाड़, शोरगुल को पार करते हुए, कुछ हिचकोले खाते हुए गाड़ी कमल के घर के सामने आकर खड़ी हो गयी। कमल कार का दरवाजा खोलकर उतर गया। उसने आनन्द और फूलमती को प्रणाम किया तथा हर्ष को आशीर्वाद देकर वहीं खड़ा हो गया। आनन्द कार को अपने घर की तरफ लेकर चल पड़ा।
दूर जाती हुई उस कार को कमल देखता रहा। गाड़ी कुछ दूर जाने के बाद उड़ते हुए धूल के गुबार और अन्धेरे में आँखों से ओझल हो गयी।
...समाप्त...