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कुँवारे नाना जी

4 October 2024

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अपने बगल में आगे की सीट पर बैठे हुए कमल से आनन्द ने कहा,‘‘आपका शहर ठीक नहीं है। यहाँ की सड़कें बहुत खराब हैं। जहाँ देखिये वहाँ सड़क पर गड्ढे ही गड्ढे दिखाई देते हैं। ऐसा लगता है कि सड़क पर गड्ढे नहीं बल्कि गड्ढे में सड़क है। जहाँ सड़क कुछ ठीक है तो वहाँ धूल का गुबार नजर आता है और जहाँ पानी लगा है वहाँ कीचड़। इससे तो अच्छा अपना गाँव ही लगता है।‘‘


एक लम्बी साँस लेते हुए कमल ने आनन्द से कहा,‘‘जी हाँ भैया! आप सही कह रहे हैं लेकिन हम कर भी क्या सकते हैं? सरकार को बस जनता से टैक्स लेना आता है, जनता की मूलभूत व जरूरी सुविधाओं को पूरा करना नहीं। यदि आम जनता किसी कारणवश समय से कोई सरकारी भुगतान या टैक्स जमा नहीं कर पाती है तो सरकार को पेनाल्टी लगाते देर नहीं लगती। आजकल सत्ता की कुर्सी पर केवल सत्ता के लोभी नेता ही बैठ रहे हैं। आम जनता उन्हें अपना मसीहा मानकर चुनती है और सत्ता की कुर्सी उनको सौंप देती है। मगर सफेद पोशाक पहने नेता सिर्फ बाहर से ही उजले नजर आते हैं। वास्तव में वे अन्दर से कपटी और काले होते हैं क्योंकि कुर्सी पर बैठते ही वे आम जनता का न होकर कुछ खास लोगों और रिश्तेदारों तक ही सीमित हो जाते हैं। आम जनता का खयाल उनको सिर्फ चुनाव की तैयारी के समय आता है, वह भी वहीं जहाँ उनका वोट बैंक सबसे ज्यादा बनने की संभावना होती है।‘‘


शहर के भीड़-भाड़, शोरगुल को पार करते हुए, कुछ हिचकोले खाते हुए गाड़ी कमल के घर के सामने आकर खड़ी हो गयी। कमल कार का दरवाजा खोलकर उतर गया। उसने आनन्द और फूलमती को प्रणाम किया तथा हर्ष को आशीर्वाद देकर वहीं खड़ा हो गया। आनन्द कार को अपने घर की तरफ लेकर चल पड़ा। 


दूर जाती हुई उस कार को कमल देखता रहा। गाड़ी कुछ दूर जाने के बाद उड़ते हुए धूल के गुबार और अन्धेरे में आँखों से ओझल हो गयी।

                                                                   ...समाप्त...

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कुँवारे नाना जी
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यह कहानी एक नवयुवक, कमल की है जो कुँवारे रहते हुए रिश्ते से नाना जी बन जाता है! कमल के ह्रदय और मन में उठने वाले मनोभावों को प्रस्तुत किया गया है! तथा उसके प्रति अन्य व्यक्तियों के व्यवहार को भी दर्शाया गया है! इसके साथ ही कुछ परम्सापराओं व सामाजिक पहलुओं पर भी प्रकाश डाला गया है !
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4 October 2024
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शाम का समय था। कमल अपने कमरे में आराम कुर्सी पर आराम करने बैठा ही था कि थोड़ी ही देर बाद दरवाजे पर एक कार आकर रुकी। कार से लगातार हॉर्न की आवाज आने लगी। आवाज सुनकर कमल कार की तरफ आकर्षित हुआ तो पता चला

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अस्पताल के गेट के सामने उनकी कार रुकी और वे लोग अपने साथ लाये कुछ खाने-पीने का सामान लेकर वार्ड की तरफ चल दिये। तभी वार्ड के सामने खड़े शंकर की निगाह कमल पर पड़ी। कमल ख्यालों में खोये हुए आगे बढ़ता जा र

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कमरे में मरीजों के कई बिस्तर लगे हुए थे। और उनके परिजन आ-जा रहे थे। प्रवेश करते ही सामने वाले बिस्तर पर नेहा अपने नवजात शिशु के साथ बैठी फूलमती से बातें कर रही थी। बिस्तर के पास ही फर्श पर चटाई बिछाकर

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इस घटना को देख नेहा बोली,‘‘यह बच्चा भी न अभी से नखरे करना चालू कर दिया है। बहुत देर से सोया हुआ था। और जब जगा तो भी आँखें ही नहीं खोल रहा था। बस जब कोई नया व्यक्ति आ रहा है तो यह अपनी आँखें खोल रहा है

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कमल ने प्रीतम का हाथ नीचे करते हुए कहा,‘‘प्रीतम जी, आप क्यों चिंतित हो रहे हैं? बुढ़ापा तो मेरा आ गया है क्योंकि मैं नाना बन गया हूँ। अभी तो आप पिता ही बने हैं इसलिए घबराने की कोई बात नहीं है। अभी आप न

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कमरे में कड़कती हुई आवाज के साथ अस्पताल में काम करने वाली मुनरी का प्रवेश हुआ। उसने कमरे के अन्दर आते ही सबको डाँटना-फटकारना शुरू कर दिया। खाना खाते हुए लोगों से उसने कहा,‘‘आप लोग कमरे के बाहर चले जाइय

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कमल ने शिशु की तरफ इशारा करते हुए नेहा से कहा,‘‘क्या मैं इसकी फोटो खींच लूँ।‘‘ नेहा ने हामी भरते हुए व शिशु के कपड़ों को सही करते हुए कहा,‘‘हाँ-हाँ, क्यों नहीं। आप खींच लीजिए फोटो।‘‘ कमल ने फोटो खी

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रात के लगभग आठ बज चुके थे। हर्ष ने बताया,‘‘डॉक्टर साहब नेहा को कल सुबह अस्पताल से छुट्टी देंगे। इसलिए आज रातभर यहाँ रुकना पड़ेगा।‘‘ फिर आगे अपनी कुछ नाराजगी जताते हुए कहा,‘‘एक तो यहाँ दिन भर में दो वक्

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अपने बगल में आगे की सीट पर बैठे हुए कमल से आनन्द ने कहा,‘‘आपका शहर ठीक नहीं है। यहाँ की सड़कें बहुत खराब हैं। जहाँ देखिये वहाँ सड़क पर गड्ढे ही गड्ढे दिखाई देते हैं। ऐसा लगता है कि सड़क पर गड्ढे नहीं बल्

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