कमरे में मरीजों के कई बिस्तर लगे हुए थे। और उनके परिजन आ-जा रहे थे। प्रवेश करते ही सामने वाले बिस्तर पर नेहा अपने नवजात शिशु के साथ बैठी फूलमती से बातें कर रही थी। बिस्तर के पास ही फर्श पर चटाई बिछाकर नेहा का खसम प्रीतम थोड़ा आराम कर रहा था। कमल को देखते ही नेहा खुशी से उछल पड़ी। तभी नेहा का भाई हर्ष आया जो कैन्टीन से भोजन लेने के लिए गया हुआ था। आते ही वह अपने चाचा कमल को प्रणाम करते हुए चरण स्पर्श करता है। फिर मीरा ने सबको मीठा खिलाकर पानी पिलाया। मरीज के अतिरिक्त किसी अन्य को बैठने की व्यवस्था नहीं थी। सभी वहाँ पर खड़े थे या फर्श पर अथवा मरीज के ही बिस्तर पर बैठे हुए थे।
पास में खड़ी प्रीतम की माँ सुमित्रा ने बगल में ही खाली पड़े बिस्तर की ओर इशारा करते हुए कमल से कहा,‘‘आप यहाँ बैठ जाइये।‘‘
कमल ने नम्रता पूर्वक आग्रह को नकारते हुए सुमित्रा से कहा,‘‘आप हमसे बड़ी हैं। कृपया आप बैठ जाइये।‘‘
तभी मीरा चुटकी लेती हुई बोल उठी,‘‘वाह! क्या बात है। सुमित्रा जी तो कमल जी का बड़ा खयाल कर रही हैं। और कमल जी का भी उनके प्रति कुछ ज्यादा ही स्नेह उमड़ रहा है।‘‘
फूलमती ने मीरा का साथ देते हुए कहा,‘‘हाँ, मीरा! सही कह रही हो। ये दोनों लोग एक दूसरे की बहुत चिन्ता कर रहे हैं। हाँ, ये ऐसा करेंगे भी क्यों नहीं। आखिर इन लोगों का सम्बन्ध जो भगतिन और छोटे भगत का है।‘‘
मीरा और फूलमती की बातें सुनकर सभी खिलखिला उठे। फिर मीरा ने नवजात शिशु को गोद में लेकर उसका चेहरा कमल को दिखाया। शिशु ने हल्की सी मुस्कान भरते हुए अपनी मनमोहक आँखें खोलीं और कमल को देखकर फिर अपनी आँखें बन्द कर लीं।
क्रमशः आगे...4