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कुँवारे नाना जी

4 October 2024

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अस्पताल के गेट के सामने उनकी कार रुकी और वे लोग अपने साथ लाये कुछ खाने-पीने का सामान लेकर वार्ड की तरफ चल दिये। तभी वार्ड के सामने खड़े शंकर की निगाह कमल पर पड़ी।

कमल ख्यालों में खोये हुए आगे बढ़ता जा रहा था। यह देख शंकर ने आवाज लगाते हुए बोला,‘‘जयराम जी की कमल भैया!‘‘

-‘‘जयराम हो शंकर भैया!‘‘

अस्पताल में दोनों ही एक दूसरे को देखकर विस्मित थे कि क्या बात है? वह यहाँ कैसे? मन में ये सवाल उठ रहे थे। मन की शान्ति के लिए दोनों मित्रों कमल और शंकर का वार्तालाप शुरू हो गया।

-‘‘आप यहाँ कैसे?‘‘

-‘‘वही तो मैं भी पूछ रहा हूँ कि आप यहाँ कैसे?‘‘

-‘‘आज मैं ताऊ जी बन गया।‘‘ (शंकर ने सामने वाली जनरल वार्ड के इमारत और पास में ही खड़े विजय की ओर इशारा करते हुए कहा)

-‘‘अरे वाह! बधाई हो, बधाई हो नवजात शिशु के ताऊजी।‘‘

-‘‘धन्यवाद। और आप...?‘‘

-‘‘ओ भाई साहब! आज मैं नाना बन गया हूँ।‘‘

-‘‘क्या? नाना!‘‘, शंकर ने सिर खुजलाते हुए  प्रश्न किया और फिर मुस्कुराते हुए बोला,‘‘न तो आपकी शादी हुई है, न ही कोई पत्नी है तो आपकी बेटी कब पैदा हुई कि आज उसका भी बच्चा हो गया? और आप नानाजी बन गये?‘‘

-‘‘जी हाँ।‘‘

-‘‘बधाई हो! बिन ब्याहे कुँवारे नानाजी।‘‘

-‘‘शुक्रिया भाई साहब।‘‘ (कमल ने मुस्कान भरते हुए जवाब दिया।)

फिर दोनों मित्र ठहाके मारकर हँसने लगे। जनरल वार्ड वाले ईमारत के ठीक सामने वाले वार्ड के ईमारत के मुख्य द्वार पर खड़े होकर आनन्द एवं मीरा दोनों कमल का इंतजार कर रहे थे। तभी मीरा ने कमल को पुकारा। और फिर तीनों उस कमरे की तरफ चल पड़े जहाँ नेहा अपने नवजात शिशु के साथ पड़ी हुई थी। भूतल के गलियारे में थोड़ा आगे बढ़े ही थे कि बीच में ही सीलिंग से पानी टपक रहा था और फर्श भींग गया था। कैश काउंटर व पर्ची काउंटर बंद हो चुके थे। वहीं सामने वेटिंग हॉल भी पूरी तरह खाली था। फर्श और सीढ़ियों पर मार्बल लगे हुए थे। धमधम की आवाज करते हुए सभी सीढ़ियों से होते हुए पहली मंजिल पर पहुँच गये। कक्ष संख्या 111 के समक्ष चप्पल-जूतों का ढेर लगा हुआ था अर्थात चप्पल-जूता पहनकर कक्ष में प्रवेश करना वर्जित था यानी साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दिया गया था। द्वार के सम्मुख आते ही आनन्द, मीरा और कमल अपने चरण पादुका उतारकर कमरे के अन्दर चले गये।

क्रमशः आगे...3

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कुँवारे नाना जी
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यह कहानी एक नवयुवक, कमल की है जो कुँवारे रहते हुए रिश्ते से नाना जी बन जाता है! कमल के ह्रदय और मन में उठने वाले मनोभावों को प्रस्तुत किया गया है! तथा उसके प्रति अन्य व्यक्तियों के व्यवहार को भी दर्शाया गया है! इसके साथ ही कुछ परम्सापराओं व सामाजिक पहलुओं पर भी प्रकाश डाला गया है !
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शाम का समय था। कमल अपने कमरे में आराम कुर्सी पर आराम करने बैठा ही था कि थोड़ी ही देर बाद दरवाजे पर एक कार आकर रुकी। कार से लगातार हॉर्न की आवाज आने लगी। आवाज सुनकर कमल कार की तरफ आकर्षित हुआ तो पता चला

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अस्पताल के गेट के सामने उनकी कार रुकी और वे लोग अपने साथ लाये कुछ खाने-पीने का सामान लेकर वार्ड की तरफ चल दिये। तभी वार्ड के सामने खड़े शंकर की निगाह कमल पर पड़ी। कमल ख्यालों में खोये हुए आगे बढ़ता जा र

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कमरे में मरीजों के कई बिस्तर लगे हुए थे। और उनके परिजन आ-जा रहे थे। प्रवेश करते ही सामने वाले बिस्तर पर नेहा अपने नवजात शिशु के साथ बैठी फूलमती से बातें कर रही थी। बिस्तर के पास ही फर्श पर चटाई बिछाकर

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इस घटना को देख नेहा बोली,‘‘यह बच्चा भी न अभी से नखरे करना चालू कर दिया है। बहुत देर से सोया हुआ था। और जब जगा तो भी आँखें ही नहीं खोल रहा था। बस जब कोई नया व्यक्ति आ रहा है तो यह अपनी आँखें खोल रहा है

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कमल ने प्रीतम का हाथ नीचे करते हुए कहा,‘‘प्रीतम जी, आप क्यों चिंतित हो रहे हैं? बुढ़ापा तो मेरा आ गया है क्योंकि मैं नाना बन गया हूँ। अभी तो आप पिता ही बने हैं इसलिए घबराने की कोई बात नहीं है। अभी आप न

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कमरे में कड़कती हुई आवाज के साथ अस्पताल में काम करने वाली मुनरी का प्रवेश हुआ। उसने कमरे के अन्दर आते ही सबको डाँटना-फटकारना शुरू कर दिया। खाना खाते हुए लोगों से उसने कहा,‘‘आप लोग कमरे के बाहर चले जाइय

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कमल ने शिशु की तरफ इशारा करते हुए नेहा से कहा,‘‘क्या मैं इसकी फोटो खींच लूँ।‘‘ नेहा ने हामी भरते हुए व शिशु के कपड़ों को सही करते हुए कहा,‘‘हाँ-हाँ, क्यों नहीं। आप खींच लीजिए फोटो।‘‘ कमल ने फोटो खी

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रात के लगभग आठ बज चुके थे। हर्ष ने बताया,‘‘डॉक्टर साहब नेहा को कल सुबह अस्पताल से छुट्टी देंगे। इसलिए आज रातभर यहाँ रुकना पड़ेगा।‘‘ फिर आगे अपनी कुछ नाराजगी जताते हुए कहा,‘‘एक तो यहाँ दिन भर में दो वक्

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अपने बगल में आगे की सीट पर बैठे हुए कमल से आनन्द ने कहा,‘‘आपका शहर ठीक नहीं है। यहाँ की सड़कें बहुत खराब हैं। जहाँ देखिये वहाँ सड़क पर गड्ढे ही गड्ढे दिखाई देते हैं। ऐसा लगता है कि सड़क पर गड्ढे नहीं बल्

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