अस्पताल के गेट के सामने उनकी कार रुकी और वे लोग अपने साथ लाये कुछ खाने-पीने का सामान लेकर वार्ड की तरफ चल दिये। तभी वार्ड के सामने खड़े शंकर की निगाह कमल पर पड़ी।
कमल ख्यालों में खोये हुए आगे बढ़ता जा रहा था। यह देख शंकर ने आवाज लगाते हुए बोला,‘‘जयराम जी की कमल भैया!‘‘
-‘‘जयराम हो शंकर भैया!‘‘
अस्पताल में दोनों ही एक दूसरे को देखकर विस्मित थे कि क्या बात है? वह यहाँ कैसे? मन में ये सवाल उठ रहे थे। मन की शान्ति के लिए दोनों मित्रों कमल और शंकर का वार्तालाप शुरू हो गया।
-‘‘आप यहाँ कैसे?‘‘
-‘‘वही तो मैं भी पूछ रहा हूँ कि आप यहाँ कैसे?‘‘
-‘‘आज मैं ताऊ जी बन गया।‘‘ (शंकर ने सामने वाली जनरल वार्ड के इमारत और पास में ही खड़े विजय की ओर इशारा करते हुए कहा)
-‘‘अरे वाह! बधाई हो, बधाई हो नवजात शिशु के ताऊजी।‘‘
-‘‘धन्यवाद। और आप...?‘‘
-‘‘ओ भाई साहब! आज मैं नाना बन गया हूँ।‘‘
-‘‘क्या? नाना!‘‘, शंकर ने सिर खुजलाते हुए प्रश्न किया और फिर मुस्कुराते हुए बोला,‘‘न तो आपकी शादी हुई है, न ही कोई पत्नी है तो आपकी बेटी कब पैदा हुई कि आज उसका भी बच्चा हो गया? और आप नानाजी बन गये?‘‘
-‘‘जी हाँ।‘‘
-‘‘बधाई हो! बिन ब्याहे कुँवारे नानाजी।‘‘
-‘‘शुक्रिया भाई साहब।‘‘ (कमल ने मुस्कान भरते हुए जवाब दिया।)
फिर दोनों मित्र ठहाके मारकर हँसने लगे। जनरल वार्ड वाले ईमारत के ठीक सामने वाले वार्ड के ईमारत के मुख्य द्वार पर खड़े होकर आनन्द एवं मीरा दोनों कमल का इंतजार कर रहे थे। तभी मीरा ने कमल को पुकारा। और फिर तीनों उस कमरे की तरफ चल पड़े जहाँ नेहा अपने नवजात शिशु के साथ पड़ी हुई थी। भूतल के गलियारे में थोड़ा आगे बढ़े ही थे कि बीच में ही सीलिंग से पानी टपक रहा था और फर्श भींग गया था। कैश काउंटर व पर्ची काउंटर बंद हो चुके थे। वहीं सामने वेटिंग हॉल भी पूरी तरह खाली था। फर्श और सीढ़ियों पर मार्बल लगे हुए थे। धमधम की आवाज करते हुए सभी सीढ़ियों से होते हुए पहली मंजिल पर पहुँच गये। कक्ष संख्या 111 के समक्ष चप्पल-जूतों का ढेर लगा हुआ था अर्थात चप्पल-जूता पहनकर कक्ष में प्रवेश करना वर्जित था यानी साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दिया गया था। द्वार के सम्मुख आते ही आनन्द, मीरा और कमल अपने चरण पादुका उतारकर कमरे के अन्दर चले गये।
क्रमशः आगे...3