पवित्र पावन गंगा
आज तेरे चरणों में बैठकर
मैं गीत गुनगुनाना चाहती हूं
आज तेरी आती जाती लहरों के साथ
मैं अठखेलियां करना चाहती हूं
आज तेरे पानी में अक्स देखकर
बच्चों की तरह मचलना चाहती हूं
आज तेरी आरती का दीप जला कर
तेरे आंचल में छोड़कर बहते हुए
मैं दूर से घंटों तुझे
निहारना चाहती हूं
पवित्र पावन गंगा
आज मैं हाथ जोड़कर
तेरे पानी में खड़े होकर
डुबकियां लगाना चाहती हूं
आज मैं तेरे घाट की सुंदरता निहार कर
खुद को धन्य बनाना चाहती हूं
आज मैं तेरे आंचल में बैठकर
अपनी मुस्कुराहट तेरे साथ बांटना चाहती हूं
अपनी व्यथा तुझे सुनाना चाहती हूं
पवित्र पावन गंगा
आज तेरे किनारे की चरण धूली
मस्तक पर लगाकर
तेरी रेत में लोटकर
बनाकर एक कुटिया तेरे किनारे
तेरे ध्यान में खोना चाहती हूं
तेरे चरणों में जो आया है
तेरी रज को जिसने मस्तक पर लगाया है
जो तेरे जल से नहाया है
उसने अपने सोए भाग्य को जगाया है
हे मां गंगा, तू सदियों से बहती हुई
पाठ हमें सिखा रही है
रुकना ना कभी बाधाओं से,
चलते रहना हमेशा, कर्तव्य पथ पर अपने
सबको समाहित कर अपने में
स्वच्छ निर्मल बने रहना
तभी तुम मंजिल अपनी पाओगे
दूसरों को भी सही मार्ग दिखाओगे।
(©ज्योति)