प्रेम की परिभाषा खोजती मै
आज जान पाई हूं
देह और मन से ऊपर
आत्मा को खोज पाई हूं
आत्म प्रेम का एक लम्हा
जीवन में रोशनी भर देता है
दुख की लकीरे मिटाकर
खुशियां अनगिनत देता है
उसी प्रेम में मगन होकर
मीरा ने पिया जहर का प्याला
यीशु ने सूली पर चढ़कर दुनिया को दिया ज्ञान निराला इसी प्रेम में मगन होकर
तुलसी ने रामचरितमानस रचा
और रत्नाकर बन गए संत बाल्मीकि
राम राम जपकर रामायण रचा
इस प्रेम में कोई चाह नहीं
इस प्रेम में कोई आह नहीं
इस प्रेम में डूबकर
अंगुलिमाल ने बुद्ध की शरण ली
इस प्रेम में डूबकर बुद्ध ने
दुनिया को नई रोशनी दी
इस प्रेम में जो भी डूबा है
उसने एक नया विचार
नया ज्ञान दुनिया को समझाया है
इस प्रेम में डूबकर
मनुष्य ने अपने आपको पाया है
इस प्रेम में छल स्वार्थ नहीं
इस प्रेम में काम , क्रोध ,लोभ का एहसास नहीं
यह निस्वार्थ सच्चा प्रेम
ईश्वर तेरा उपहार है
ईश्वर तेरा प्यार है
इसमें तेरा इंतजार है
इसे जिसने पाया है
उसने जीवन को
मानवता की सेवा में लगाया है
उसने दुनिया को स्वर्ग बनाया है
(©ज्योति)