मेरे घर के सामने
आम का विशाल वृक्ष
आम से लदा हुआ
हर किसी का स्वागत करता है
जो भी जाता है उस रास्ते पर
बरबस ही उसकी दृष्टि
ऊपर उठ जाती है पेड़ की ओर
लदे आमो की टहनियों पर
जो नीचे झुकी हुई है
सबको बुला रही हैं
अपनी और बिना भेदभाव के
लो आ गई बंदरों की टोली
आज भरपेट आम खाएगी
कुछ खाएगी कुछ गिराएगी
जो गिरेंगे नीचे
उसे लोग खुश होकर उठाएंगे
फिर सबको बताएंगे
बंदरों ने कितने आम गिराये
आज उन्होंने कितने आम पाए
लो आ रही है आवाज
कोयल के सुरीले गानों की
चिड़ियों के चहचाहने की
वे भी आम खा रही है
गुठलियाँ नीचे गिरा हमें चिढ़ा रही हैं
लो आ गई फौज बच्चों की हाथों में डंडा लिए
कुछ ने पत्थर हाथों में उठाए
कुछ पेड़ पर चढ रहे हैं
कुछ आम लपक रहे हैं
।आम के पेड़ का मालिक
बार-बार उन्हें उन्हेंभगाता है
बार-बार उन्हें धमकाता है
पर मालिक के घर के अंदरजाते ही
वे फिर से तोड़ने आ जाते हैं
लो आ गई आंधी रे
आंधी के साथ पानी रे
लोग देख रहे हैं
झड़ रहे आमो को
उठा कर लाएंगे वे
धोकर खाएंगे वे
खुश होंगे पाकर आम
सोचती हूं आम के
एक पेड़ ऩे हीं
ना जाने कितनों
को तृप्त किया
अपनी आंमो से
अपनी छाया से
सबका वह मन में बहलाता है
सबको वह अपने पास बुलाता है
मारता जो पत्थर उसे
सीचता जो पानी से उसे
रौंदता जो पत्तियों को उसकी
जो पूजा करता है उसकी
वह समान रूप से देता है उनको आम
बिना भेदभाव किए हुए
उसके मीठे आम, रसीले आम
मानवता को तृप्त करते हैं
फिर मानव क्यों हमेशा
अपने पराए का बीज बोता है
ईष्या द्वेष को अपने मन में ढोता है
मित्र और शत्रु की परिभाषा गढ़ कर
ना कभी चैन से सोता है
ना चैन से खाता है
ना चैन से रहता है
अनगिनत भयों से डरकर
अपने को खोता है
हे मानव तू भी
वृक्ष की तरह सिर्फ देना सीख
फिर देख तेरी जिंदगी बदल जाएगी
परोपकार की आग में
यह सृष्टि भी संवर जाएगी।
(©ज्योति)